Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
भागलपुर, 3 सितंबर (हि.स.)। देश में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आदेश पारित किया है। उसके बाद से देश में कई तरह के चर्चाएं शुरू हो गई है। लेकिन इन सबों के बीच भागलपुर के सौरभ बनर्जी उर्फ बाबई दादा बीते 1982 से अपना जीवन आवारा कुत्तों के लिए समर्पित कर दिया है।
दादा कमाई का 70 फीसदी हिस्सा कुत्तों के भोजन और दवाई में खर्च करता हैं। वहीं जीवन का 80 फीसदी समय आवारा कुत्तों के पीछे व्यतीत करता है। यही नहीं सौरभ बनर्जी का घर आवारा कुत्तों का फीडिंग जॉन बना हुआ है। दर्जनों की संख्या आवारा कुत्ता इनके घर में जहां-तहां बिना रोक-टोक के आते जाते हैं।
भागलपुर के मशाकचक के सतीश चंद्र लेन के रहने वाले सौरभ बनर्जी ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में कहा कि भागलपुर टीएनबी कॉलेज से बीकॉम की पढ़ाई किए हैं और वे पेशे से प्राइवेट शिक्षक हैं। ट्यूशन पढ़ाते थे। लेकिन कोरोना के बाद से अब पढ़ाना बंद कर दिया है। कमाई का एकमात्र साधन ट्यूशन ही था। उससे जो कुछ काम आते थे उसमें से घर का खर्च चलता था और कुत्तों के पीछे खर्च कर देते थे। लेकिन अब जब पढ़ाई का काम छोड़ दिया तो थोड़ी देर परेशानी जरूर हुई लेकिन मेरे इस काम में रिश्तेदार का भरपूर साथ मिला।
उन्होंने बताया कि कुत्ता से इतना प्यार था कि दिन रात उनकी सेवा में लगे रहते हैं। यह देखकर मेरी फुफेरी बहन चंदना बनर्जी आरबीआई रिटायर्ड जनरल मैनेजर, चचेरी बहन और चचेरा भाई, फुफेरा भाई डॉक्टर कमल मुखर्जी सभी ने अपने हिस्से का कुछ पैसा हर महीना भेजना शुरू कर दिया। अभी भी पैसे भेजते हैं। उसी में से घर का खर्च चलता है और कुत्तों के पीछे खर्च करते हैं। सौरभ बताते हैं कि जब भी वो सड़क पर बीमार कुत्ते को देखते हैं तो उसे घर ले आते हैं और उसे पालते हैं। घर में कुत्तों के लिए रूम और बेड के साथ-साथ अन्य चीजों की भी व्यवस्था है। घायल कुत्तों की मरहम पट्टी करके उसकी सेवा करने में सौरभ को बहुत आनंद मिलता है। अब तक उन्होंने करीब 300 से अधिक कुत्तों का पालन पोषण किया है।
सौरभ बनर्जी बताते हैं कोई संतान नहीं है, वे अपने घर में पत्नी के साथ रहते हैं, वो कुत्तों को संतान मानते हैं और देखभाल करते हैं। जब कुत्ते की मृत्यु हो जाती है तो उसे दफना देते हैं और उस शोक में तीन दिन तक हिंदू रीति रिवाज के अनुसार खाना पीना और अपने जीवनचर्या को बदलते भी हैं। अभी उनके घर में 25 कुत्ते हैं, जिनकी सेवा वो बड़े प्यार से करते हैं। सौरभ बनर्जी बताते हैं कि उनके इस काम में पत्नी पहले बनर्जी साथ देती है सुबह-सुबह उठकर कुत्तों के लिए दूध गर्म करती है। चावल और दाल बनती है। पड़ोसी केका भादुड़ी बताती है कि हम 40 साल से इन्हें जान रहे हैं। यह घायल कुत्तों को लाकर अपने घर में इलाज करते हैं। उनका देखभाल करते हैं और रखते हैं।
सौरभ बनर्जी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश बिल्कुल सही है। क्योंकि मानव को भी रहने का हक है, साथ में कुत्तों को भी रहने का हक है। लेकिन कुछ कुत्ता रैबीज के शिकार हो जाते हैं। इससे बचने की जरूरत है। वे बताते हैं कि कुत्तों और इंसानों के बीच का रिश्ता कितना अनोखा होता है। इसे शब्दों में बयां करना न तो मुमकिन है और न ही इसकी जरूरत है, ये हमारे सबसे सच्चे और वफादार दोस्त होते हैं। अगर आपके पास कोई कुत्ता है, तो आप इस बात को और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। कुत्ते आपकी भावनाओं को समझ जाते हैं, इसलिए आपने नोटिस किया होगा कि जब आप दुखी होते हैं, जो आपका कुत्ता आपको खुश करने की कोशिश में लग जाता है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / बिजय शंकर