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आज की जलवायु चुनौतियों से निपटने में अंतर धार्मिक गुरुओं की भूमिका महत्वपूर्ण
वाराणसी,02 सितम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी में मंगलवार को आज की जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए अंतर धार्मिक गुरू एक मंच पर आए। द क्लाइमेट एजेंडा संस्था के बैनर तले भेलूपुर स्थित एक होटल में जुटे धर्मगुरुओं, आम नागरिकों, सामाजिक प्रतिनिधियों और छात्रों ने जलवायु परिवर्तन पर आयोजित अंतर धार्मिक संवाद में पूरे उत्साह से भाग लिया।
संवाद में ईंट भट्ठा क्षेत्र में स्वच्छ तकनीक अपनाने, आजीविका सुनिश्चित करने और श्रमिकों को सम्मान दिलाने की तात्कालिक आवश्यकताओं पर जोर दिया गया। बुनियाद अभियान के तहत संवाद में यह रेखांकित किया गया कि विभिन्न आस्थाओं की परंपराएं करुणा, न्याय और पृथ्वी की देखभाल जैसे साझा मूल्यों को अपनाती हैं। गुरुओं ने यह जोर देकर कहा कि ये मूल्य पर्यावरण की रक्षा और जरूरतमंद समुदायों के संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। संवाद के दौरान ‘बुनियाद समर्थन याचिका पत्र’ की भी शुरुआत की गई।
कार्यक्रम में पैनल चर्चा के दौरान गुरुओं ने अपनी-अपनी आध्यात्मिक परंपराओं से प्रकृति संरक्षण और मानव गरिमा बनाए रखने के दृष्टिकोण साझा किए। इस संवाद में यह प्रमुख रूप से सामने आया कि आज की जलवायु चुनौतियों से निपटने में अंतर्धार्मिक गुरुओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे समुदायों और नीति-निर्माताओं दोनों को सक्रिय कदम उठाने के लिए प्रेरित करते हैं। अंतरधार्मिक सम्मेलन में शास्त्री देवेंद्र ठाकुर ने कहा कि वायु और जल प्रदूषण का उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी है तथा शांति और सबका कल्याण तभी संभव है जब वातावरण प्रदूषणमुक्त हो।
वैज्ञानिक डॉ. सत्यप्रकाश पांडेय ने बताया कि धर्म हमें कम साधनों में संतोषपूर्वक जीवन जीने की शिक्षा देता है और यही विचार आधुनिक समय के ‘सस्टेनेबिलिटी’ का आधार है। गोविन्द दास शास्त्री ने कबीर की वाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि जब हम शिष्य बनकर सीखते हैं तभी गुरु और ज्ञान देते हैं, परन्तु भौतिकवाद और उपभोग की अंधी दौड़ समाज को संकट में डाल सकती है।
फादर प्रवीण जोशी ने बाइबल के उत्पत्ति ग्रंथ का हवाला देते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधन ईश्वर की पवित्र रचना है और इनका संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है। इसी क्रम में ग्यानी रंजीत ने गुरुवाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि हवा गुरु के समान, पानी पिता के समान और धरती माता के समान है, इसलिए पेड़-पौधों का विनाश न करें वरना सांस लेना भी कठिन हो जाएगा।
फखरुद्दीन वाहिद क़ासिम ने कहा कि प्रदूषण का समाधान धर्म से ही संभव है, हमारे धार्मिक ग्रंथ बताते हैं कि प्रकृति का विनाश इंसानी करतूतों का नतीजा है।
शास्त्री धर्मेंद्र मिश्रा ने सरकार से अपील किया कि बुनियाद अभियान के माध्यम से ईंट उद्योग को बेहतर बनाने के लिए उठाई गई मांगों पर ध्यान देकर उचित कार्रवाई की जाए। कार्यक्रम का संचालन आचार्य राघवेन्द्र पाण्डेय ने किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी