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मृत्युंजय आश्रम द्वारा आयोजित कार्यक्रम मे शामिल हुए सैकड़ों लोग
अनूपपुर, 9 अगस्त (हि.स.)। रक्षा बंधन के पावन अवसर पर शनिवार को मां नर्मदा की उद्गम नगरी मध्य प्रदेश के अमरकंटक मे नर्मदा तट पर एकत्रित सैकड़ों लोगों ने आचार्यों द्वारा मंत्रोच्चारित पूर्ण विधि स्नान के साथ श्रावणी महोत्सव मनाया गया। पूर्णिमा के दिन प्रात: 8 बजे से दोपहर तीन बजे तक हुए महत्वपूर्ण संस्कार से जुडा श्रावणी महोत्सव का आयोजन पूरे भक्ति भाव और विधि पालन के साथ सम्पन्न हुआ।
रक्षा बंधन पर्व के पावन अवसर पर अमरकंटक स्थित रामघाट में 9 अगस्त की प्रात: 8 बजे से ब्राम्हणों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व श्रावणी महोत्सव पूर्ण श्रद्धा, भक्तिभाव और उल्लास के साथ मनाया गया। यज्ञोपवीत परिवर्तन, ऋषियों - गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करने के इस महापर्व का आयोजन मृत्युंजय आश्रम द्वारा किया गया। जिसमे अमरकंटक, अनूपपुर, कोतमा,बिजुरी, चचाई, रायपुर, पेण्ड्रा, बिलासपुर, मैनपुरी, प्रयागराज, रीवा, शहडोल, बुढार सहित अन्य स्थानों से सैकडों ब्रामहणों सहित सभी वर्ग के लोग शामिल हुए।
महामण्डलेश्वर स्वामी हरिहरानंद सरस्वती महाराज की उपस्थिति मे विद्वान आचार्य रविजी महाराज द्वारा नर्मदा तट पर सुबह से विधि विधान के साथ धारण किये जाने वाले यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) को बदलने और मंत्रोच्चारित जनेऊ धारण का कार्य मंत्रोच्चारण के साथ दस विधि स्नान से प्रारंभ हुआ। जिसमे मृदा, दूध, दही, पंचामृत, फलो के रस, इत्र, तिल, हल्दी , गोबर,शुद्ध जल से सभी विप्र जनों को स्नान कराया गया। इसके बाद ज्ञान, विद्या और ऋषियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए जाने - अनजाने मे हुए पापों का प्रायश्चित करते हुए क्षमा याचना की गयी। जनेऊ धारण करने वाले सुसंस्कारित ब्राम्हणों एवं अन्य लोगों ने दस स्नान के बाद मृत्युंजय आश्रम के पूजन कक्ष मे पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना, यज्ञ, आरती करके मंत्रोच्चारित यज्ञोपवीत धारण किया।
श्रावणी पर्व ज्ञान और विद्या की साधना का पर्व है। इसके साथ ही वेद पाठी छात्रों के यज्ञोपवीत संस्कार के साथ वेद-वेदांगों का अध्ययन प्रारंभ हुआ।। यह पर्व ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी अवसर है, जिन्होंने हमें ज्ञान का प्रकाश दिया। इस दिन, ऋषि-तर्पण करके ऋषियों के प्रति सम्मान प्रकट किया गया। स्नान करके और धार्मिक अनुष्ठान करके अपने पापों से मुक्ति पाने का प्रयास करते हुए त्रुटियों के लिये क्षमा याचना की गयी। आचार्य और पुरोहितों ने मंत्रोच्चारित रक्षा सूत्र बाँध कर समाज और राष्ट्र धर्म की रक्षा का संकल्प दिलाया। वैदिक परंपरा के अनुसार यह क्रिया वर्षभर में मन, वचन और कर्म से हुई त्रुटियों की क्षमा-याचना, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के उद्देश्य से किया जाता है। इसके लिये उपस्थित विद्वान एवं ब्राह्मण गणो द्वारा अपने-अपने गोत्र के ऋषियों का तर्पण, होम-हवन एवं देव पूजन किया गया।
मृत्युंजय आश्रम के प्रबंधक योगेश दुबे ने बताया कि श्रावणी पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे श्रावणी पूजन या उपनयन संस्कार दिवस भी कहते हैं। यह पर्व मुख्यतः ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज में विशेष धार्मिक महत्व रखता है। वैदिक परंपरा में इसे वेदाध्ययन और यज्ञोपवीत परिवर्तन का दिन माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, गोत्र ऋषियों को तर्पण, देव पूजन, दान-पुण्य और हवन का विशेष महत्व है।उत्तर भारत में इसे रक्षाबंधन, महाराष्ट्र में नारली पूर्णिमा, दक्षिण भारत में वेदाध्ययन की शुरुआत और गुजरात-राजस्थान में पवित्रा एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि श्रावणी पर्व पर किए गए स्नान, जनेऊ परिवर्तन, तर्पण और दान से पापों का क्षय होता है,पुण्य की प्राप्ति होती है तथा समाज में भाईचारे और आध्यात्मिक अनुशासन की भावना प्रबल होती है। अमरकंटक मे श्रावणी महोत्सव के अवसर पर उपस्थित लोगों ने लगातार चौथे वर्ष रामघाट मे यह पर्व मनाया। जिसकी पूर्णता भण्डारे का प्रसाद ग्रहण करके और महामण्डलेश्वर स्वामी श्री हरिहरानंद जी का आशीर्वाद प्राप्त कर हुआ।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश शुक्ला