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वाराणसी, 09 अगस्त (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विभाग में शनिवार को सावन मास की पूर्णिमा पर श्रावणी उपाकर्म की ऋषि परम्परा का निर्वाह किया गया। वेद विभागाध्यक्ष प्रोफेसर महेंद्र नाथ पांडेय सहित अन्य अध्यापकों और विद्यार्थियो ने गंगा तट पर स्नान आदि के साथ विधि पूर्वक गण पूजन किया। उसके बाद विश्वविद्यालय के वेद विभाग में आकर कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा के आशीर्वादन एवं प्रोफेसर रामपूजन पाण्डेय की अध्यक्षता में षोडशोपचार विधि से संस्कृत, संस्कृति और संस्कार तथा दया, करुणा, राष्ट्रीयता के भाव के लिये सप्तऋषि, गौरी -गणेश पूजन किया गया।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. शर्मा ने कहा कि गुरु (शिक्षक) संस्कृत-संस्कार और संस्कृति के परिदृश्य में विद्यार्थियों को उत्तम कर्म करने का पाठ पढ़ायें। शिक्षक श्रेष्ठ गुरु बन श्रेष्ठ विद्यार्थियों का जन्म दें। जब श्रेष्ठ विद्यार्थी होंगे तभी श्रेष्ठ भारत का निर्माण होगा। वही कर्णधार भारत के परिदृश्य को विश्व फलक पर स्थापित करेंगे। विभागाध्यक्ष प्रोफेसर महेन्द्र पांडेय ने बताया कि इस दिन सुबह दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान करते हैं। फिर कोरे जनेऊ की पूजा करते हैं। जनेऊ की गांठ में ब्रह्म स्थित होते हैं। उनके धागों में सप्तऋषि का वास माना जाता है। ब्रह्म और सप्तऋषि पूजन के बाद नदी या सरोवर में खड़े होकर ब्रह्मकर्म श्रावणी संपन्न होती है। पूजा के बाद उसमें शामिल जनेऊ में से एक जनेऊ पहन लेते हैं और बाकी के जनेऊ रख लेते हैं। पूरे वर्षभर जब भी जनेऊ बदलने की आवश्यकता होती है तो श्रावणी उपाकर्म के पूजन वाले जनेऊ को ही पहनते हैं। न्याय शास्त्र के विद्वान् प्रो. रामपूजन पाण्डेय ने कहा कि यह पर्व द्विजन्म के नाम से भी जाना जाता है। मनुष्य एक बार अपने माँ के तन से जन्म लेता है। तब मनुष्य का जन्म ही नहीं पशुओं पक्षियों का भी इस तरह से जन्म होता है, लेकिन मनुष्य उन सबसे भिन्न है। उसका श्रेष्ठ गुरुओं की सानिध्यता में शिष्य बनाकर आज के ही दिन गुरुकुलों में विद्याध्ययन के लिए प्रवेश दिया जाता है। यहाँ पर गुरु जन अपने शिष्यों को राष्ट्र, समाज और परिवार के प्रति उत्तम चरित्र, नैतिक, राष्ट्रीयता, संस्कार संस्कृति एवं दयाभाव का अध्ययन कराते हैं। कार्यक्रम में प्रो. सुधाकर मिश्र, डॉ विजय कुमार शर्मा, डॉ सत्येन्द्र कुमार यादव, प्रो. सदानंद शुक्ल आदि ने भी भागीदारी की।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी