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एर्राबोर में न केवल रिश्तों का, बल्कि बलिदान और वीरता का अनोखा रक्षाबंधन का पर्व मनाने की बनी परंपरा
सुकमा, 9 अगस्त (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले का एर्राबोर गांव प्रतिवर्ष रक्षाबंधन पर एक ऐसा नज़ारा देखता है, जो आंखों को नम कर देता है। यहां स्थानीय महिलाएं-बहनें अपने उन बलिदान सुरक्षा बलों की मूर्तियों पर राखी बांधती हैं, जो सलवा जुडूम आंदोलन के दौरान नक्सलियों से लोहा लेते हुए बलिदान हो गए थे । यह परंपरा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है और आज भी गांव के लोगों के दिल में इन बलिदान जवानों की याद जिंदा है। रक्षाबंधन के दिन गांव की बहनें थाली में राखी, चावल और मिठाई लेकर शहीद स्मारक की ओर जाती हैं। वहां मौजूद बलिदानी जवानों की मूर्तियों के सामने वे धूप-दीप जलाकर उन्हें याद करती हैं, फिर नम आंखों और भरे गले से उनके हाथों की जगह मूर्ति की कलाई पर राखी बांधती हैं। यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि अपने वीर भाइयों के प्रति अनंत प्रेम और गर्व का प्रतीक है। एर्राबोर का यह अनोखा रक्षाबंधन न केवल रिश्तों का, बल्कि बलिदान और वीरता का भी पर्व है। बच्चे और युवा भी इस परंपरा में शामिल होते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियों को यह याद रहे कि नक्सली हिंसा ने इस धरती से कितने सपूत छीन लिए थे।
एर्राबोर, जो कभी नक्सली हिंसा का गढ़ माना जाता था, 2007 में सुकमा जिले में सलवा जुडूम के दौर में जवानों और नक्सलियों के बीच हुए अलग-अलग घटनाओं ने सुरक्षा बलों के जवानों ने शहादत प्राप्त की। उन घटनाओं में शहीद हुए जवानों में से कई जवान यहीं के बेटे थे, जिनकी वीरगाथा आज भी बुजुर्गों की जुबान पर है ।
गांव की एक महिला बताती हैं, भैया अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रक्षाबंधन पर उनका आशीर्वाद हमें महसूस होता है। हम जानते हैं कि उन्होंने अपनी जान हमारी सुरक्षा के लिए दी। आज अगर हम चैन की सांस ले पा रहे हैं, तो सिर्फ उनके बलिदान की वजह से। स्थानीय पुलिस और सीआरपीएफ के जवान भी इस मौके पर मौजूद रहते हैं और बहनों से वादा करते हैं कि वे गांव की सुरक्षा के लिए हर वक्त तत्पर रहेंगे। यह दृश्य सुरक्षा बलों और ग्रामीणों के बीच विश्वास का एक मजबूत सेतु भी बनाता है। हालांकि समय के साथ एर्राबोर और आस-पास के इलाकों में नक्सली वारदात कम हुई हैं, लेकिन वह दर्द और वीरता की यादें आज भी ताज़ा हैं। यहां राखी सिर्फ धागा नहीं, बल्कि वह अटूट बंधन है जो बहनों को उनके शहीद भाइयों से जोड़ता है-चाहे वे इस दुनिया में हों या नहीं। नक्सली मुठभेड़ों में बलिदान हुए जवानों को सम्मान देने के लिए जिला प्रशासन की ओर से इन बलीदानी जवानों की प्रतिमा पुलिस स्मारक में स्थापित की गई है, बलीदानी जवानों की बहन आज भी भाई को याद कर भावुक हो जाती है।
क्या हुआ था 19 जुलाई ,2007 को
19 जुलाई 2007 को सुकमा के उड़पलमेटा में नक्सलियों के हमले में 24 जवान शहीद हो गए थे। इनमें जिला बल के तीन एसपीओ भी शहीद हुए थे, जो आपस में सगे भाई थे, यह तीनों एर्राबोर के रहने वाले थे। परिवारजनों के द्वारा शहीदों के सम्मान में एर्राबोर में शहीदों की प्रतिमाएं लगाईं गईं जिनमें तीनों भाई की प्रतिमा भी शामिल है। इन शहीद भाइयों की बहन संकुरी ने बताया कि सलवा जुडूम अंदोलन से लेकर अब तक उन्होंने अलग-अलग घटनाओं में 7 भाईयों को खोया है, जिनमें चार चचेरे भाई भी शामिल हैं। अब हर साल रक्षाबंधन के दिन संकुरी बलिदान 7 भाइयों की प्रतिमाओं पर नम आंखों से राखी बांधती हैं। संकुरी कहती है कि शहीद भाई आज भी दिलों में जिंदा हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे