टीबीपी का मत-बलूचिस्तान में 'सच बोलना, लिखना' अघोषित अपराध
क्वेटा, 09 अगस्त (हि.स.)। द बलूचिस्तान पोस्ट (टीबीपी) का पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के सूरत-ए-हाल पर अभिमत है, '''' बलूचिस्तान दुनिया के लिए सूचना का एक काला धब्बा बन गया है। पाकिस्तान के शक्तिशाली तबके इस स्थिति को बनाए रखने के लिए लगातार तर
प्रतीकात्मक।


क्वेटा, 09 अगस्त (हि.स.)। द बलूचिस्तान पोस्ट (टीबीपी) का पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के सूरत-ए-हाल पर अभिमत है, '' बलूचिस्तान दुनिया के लिए सूचना का एक काला धब्बा बन गया है। पाकिस्तान के शक्तिशाली तबके इस स्थिति को बनाए रखने के लिए लगातार तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। देश के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बलूचिस्तान की वस्तुगत वास्तविकताओं के बारे में बोलना अघोषित अपराध बन गया है।''

टीबीपी ने अपने संपादकीय में और भी मुद्दे उठाए हैं। लिखा गया है,'' बलूच मुद्दे पर लिखने वाले पत्रकारों को सरकारी दमन का सामना करना पड़ता है। राष्ट्रीय चिंताओं को उजागर करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया जाता है और दुनिया को बलूचिस्तान तक पहुंचने से रोकने के लिए मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाना आम बात हो गई है।''

इस मीडिया संस्थान का अभिमत है, ''बलूचिस्तान के अधिकांश हिस्सों में इंटरनेट सेवा पहले ही निलंबित कर दी गई थी और मोबाइल इंटरनेट केवल कुछ प्रमुख शहरों में ही उपलब्ध था। 06 अगस्त की शाम से बिगड़ती सुरक्षा स्थितियों का हवाला देते हुए पूरे बलूचिस्तान में मोबाइल इंटरनेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।''

टीबीपी ने पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की 9-12 जुलाई 2025 की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट के हवाले से कहा कि बलूचिस्तान में बेहद चिंताजनक प्रवृत्ति लोगों को 'जबरन उठा कर ले जाना' जारी है। लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है। प्रांतीय स्वायत्तता और भी कम हो रही है। पत्रकारिता पर कड़े प्रतिबंध लगे हैं। दमन संस्कृति बेरोकटोक चल रही है। ये सभी कारक बलूचिस्तान में जनता के अलगाव और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा रहे हैं।

कहा गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में इंटरनेट सेवाओं के बंद होने का सबसे अधिक असर विद्यार्थियों, व्यापारियों, ई-कॉमर्स, मोबाइल बैंकिंग और फ्रीलांसिंग से जुड़े लोगों पर पड़ता है। हालांकि, प्रतिरोध आंदोलनों पर इसका तुरंत असर नहीं पड़ता, क्योंकि इंटरनेट प्रतिबंध केवल अस्थायी रूप से सूचना के प्रवाह को रोक सकते हैं। सूचना तक पहुंच सीमित करने से सच सामने आने में देरी हो सकती है, लेकिन यह दुनिया को बलूचिस्तान की जमीनी हकीकत से हमेशा के लिए अनजान नहीं रख सकता।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद