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उज्जैन, 9 अगस्त (हि.स.)। मध्यप्रदेश के उज्जैन में सोमवार को भगवान महाकाल की श्रावण भादो मास की पांचवी सवारी निकलेगी। सवारी में 04 जनजातीय एवं लोक नृत्य कलाकारों के दल सहभागिता करेंगे। बैतूल से मिलाप इवने के नेतृत्व में गोण्ड जनजातीय ठाट्या नृत्य, खजुराहो से गणेश रजक के नेतृत्व कछियाई लोक नृत्य, दमोह से पंकज नामदेव नेतृत्व में बधाई लोक नृत्य एवं डिण्डोरी के सुखीराम मरावी के नेतृत्व गेडी जनजातीय नृत्य की प्रस्तुतियां सम्मिलित है |
यह सभी दल श्री महाकालेश्वर भगवान की सवारी के साथ अपनी प्रस्तुति देते हुए चलेगे | सभी जनजातीय दल संस्कृति विभाग भोपाल, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद व त्रिवेणी कला एवं पुरातत्वव संग्रहालय के माध्यम से भगवान श्री महाकालेश्वर जी की पंचम सवारी सहभागिता करेगे |
दलों का परिचय
1. गोण्ड जनजातीय ठाट्या नृत्य: बैतुल
के ग्रामीण क्षेत्रों के कई ग्रामों में इनकी सघनता है। गाँव के पशुओं को चराने के लिए ठाट्या भी इनके साथ ही रहते आए हैं। पारंपरिक रूप से पूरे गाँव के पशुओं को चराना इनकी आजीविका का साधन है। बैतुल का गोण्ड जनजातीय थातिया नृत्य बासुरी द्वारा किया जाता है | ये नृत्य गोवेर्धन एवं लक्ष्मी पूजन की रात्रि से प्रारम्भ किया जाता है | अक्टूबर से नवम्बर तक बैतुल जिले में पूर्वजों की परम्परा का निर्वहन करते हुए यह नृत्य किया जाता है | कहीं-कहीं इन्हें 'ग्वाल बंसी ठाट्या' नाम से भी जाना जाता है। इन्हें' गोंड गायकी' के नाम से भी जाना जाता है। 'गायकी' शब्द का सामान्य अर्थ है, गाय से सम्बद्ध या गाय की देखभाल करने वाला है | शिल्प, नृत्य, गायन, वादन और वाचिक परंपरा का दीपावली पर समेकित प्रदर्शन वैसा ही होता है जैसे वर्षा ऋतु में मोर अपने पूरे पंखों को फैला कर नृत्य करता है। इनकी वेशभूषा धोती, कुर्ता, पगड़ी, रंग-बिरंगा थुरा, जाकेट एवं कवडी और बैलो की पुछ के बलों से बनी कौडी वाले वस्त्र, पैरों में घुघरु और हाथ में बासुरी लेकर नृत्य किया जाता है | वादन में ढोल, टिमकी, ताशा, मंजीरा, बासुरी की धुन के माध्यम से नृत्य किया जाता है |
* 2. कछियाई लोक नृत्य: कछियाई, बुंदेलखंड क्षेत्र का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है | यह नृत्य बुंदेलखंड के लोकप्रिय लोक नृत्यों में से एक है, जिसमें राई, सेरा, और ढिमरयाई नृत्य भी शामिल हैं | कछियाई नृत्य की अपनी अलग पहचान और सांस्कृतिक महत्व है यह नृत्य बुंदेलखंड की लोक संस्कृति का एक अभिन्न अंग है | इस नृत्य में आमतौर पर एक विशेष प्रकार की वेशभूषा और संगीत का उपयोग किया जाता है | कछियाई नृत्य को अक्सर मेलों और त्योहारों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है और यह नृत्य बुंदेलखंड के लोगों के जीवन और परंपराओं को दर्शाता है |यह नृत्य अन्य बुंदेलखंडी नृत्यों के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है |
* 3. बधाई लोक नृत्य डिंडोरी: बधाई लोक नृत्य, मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है, जो मुख्य रूप से खुशी के अवसरों जैसे जन्म, विवाह और त्योहारों पर किया जाता है | यह नृत्य पुरुषों और महिलाओं द्वारा एक साथ किया जाता है, और रंगीन कपड़े पहनकर, मृदंग और ढपले की थाप पर किया जाता है | यह नृत्य देवी शीतला को धन्यवाद देने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए भी किया जाता है|
* 4. गेडी जनजातीय नृत्य, डिंडोरी: गेंडी नृत्य मध्य भारत के छत्तीसगढ़ क्षेत्र का एक पारंपरिक लोक नृत्य है। मध्य भारत, खासकर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के गोंड जनजाति द्वारा किया जाने वाला एक पारंपरिक लोक नृत्य है. यह नृत्य बांस के खंभों पर चढ़कर किया जाता है, जिससे एक लयबद्ध और आकर्षक प्रदर्शन बनता है. यह नृत्य फसल उत्सवों, शादियों और अन्य समारोहों के दौरान किया जाता है| गेड़ी नृत्य, छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की मुड़िया जनजाति का एक पारंपरिक नृत्य है. यह नृत्य, सावन के महीने में आने वाले हरेली पर्व पर किया जाता है. इस नृत्य में, दो नर्तक टिमकी बजाते हैं और आठ से दस युवक या इससे अधिक लोग, बांस की लंबी लकड़ियों (गेड़ी) पर चढ़कर उनके साथ नृत्य करते हैं | यह नृत्य संतुलन पर आधारित होता है | इनकी वेशभूषा में विभिन्न रंगों से सजी गेड़ी, कमर में कौड़ियों से जड़ी पेटी, मोर पंख, आदि पहनकर नृत्य करते है | यह नृत्य, छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते है |
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हिन्दुस्थान समाचार / ललित ज्वेल