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कोलकाता, 08 अगस्त (हि.स.)। राज्यसभा में सांसद शामिक भट्टाचार्य द्वारा पश्चिम बंगाल में चावल उत्पादन की स्थिति को लेकर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में केंद्र सरकार ने बताया है कि राज्य में चावल उत्पादन में वृद्धि होने के बावजूद वह अब देश का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य नहीं रहा। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-23 में राज्य में चावल उत्पादन 154.84 लाख टन था, जो 2024-25 में बढ़कर 164.91 लाख टन हो गया है। हालांकि इसी अवधि में उत्तर प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में चावल उत्पादन में कहीं अधिक तेज़ी से वृद्धि दर्ज की गई, जिससे पश्चिम बंगाल अब चावल उत्पादन में देशभर में तीसरे स्थान पर खिसक गया है।
मंत्रालय ने जानकारी दी कि चावल की खेती में आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने प्रयास शुरू किए हैं। चावल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और किसानों को प्रमाणित बीज उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक बुवाई मौसम (खरीफ और रबी) से पहले ज़ोनल बीज समीक्षा बैठकें आयोजित की जाती हैं। पश्चिम बंगाल में गत दो वर्षों और चालू खरीफ 2025 सीजन में आवश्यकता से अधिक प्रमाणित बीज उपलब्ध कराए गए हैं।
सरकार ने अनुसंधान और आधुनिक कृषि तकनीकों के प्रसार के लिए भी ठोस कदम उठाए हैं। आईसीएआर के केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक के सहयोग से पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में उन्नत और जलवायु अनुकूल चावल की किस्में वितरित की गई हैं। कूचबिहार में लगभग 700 किसानों को 10 टन बीज, बर्दवान और हुगली में लगभग 150 किसानों को सीआर धान 312 और सीआर धान 801 जैसी किस्मों के बीज और बांकुड़ा व पुरुलिया में एक हजार किसानों को सीआर धान 807 और सीआर धान 804 जैसे बीज प्रदान किए गए हैं। राज्य में स्थानीय बीज श्रृंखला को सशक्त बनाने के लिए ब्रीडर बीज भी वितरित किए गए हैं।
मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खाद जैसे गोबर खाद, कम्पोस्ट और वर्मी कम्पोस्ट के समन्वित उपयोग को बढ़ावा दिया गया है। किसानों को उचित मूल्य पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने नीम लेपित यूरिया की अधिकतम खुदरा कीमत 266 प्रति 45 किलोग्राम बैग तय की है।
इसके साथ ही, सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और पोषण मिशन को भी सक्रिय रूप से लागू किया है, जो वर्तमान में 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहा है।
इन सभी प्रयासों के बावजूद पश्चिम बंगाल का चावल उत्पादन अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत धीमा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कृषि क्षेत्र में तकनीकी नवाचार, बेहतर बीज प्रणाली और उर्वरता प्रबंधन को पूरी क्षमता के साथ लागू करें, तो पश्चिम बंगाल फिर से देश के अग्रणी चावल उत्पादक राज्यों में स्थान प्राप्त कर सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय