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कटिहार, 07 अगस्त (हि.स.)। बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डीआर सिंह के दिशा निर्देश पर निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. आरके सोहाने के द्वारा वैज्ञानिकों की एक टीम गठित की गई है, जो केले में आने वाली समस्याओं का समाधान करने के लिए काम कर रही हैं।
गुरुवार को फलका प्रखंड के भंगहा गांव में आयोजित प्रशिक्षण सह सर्वेक्षण कार्यक्रम में केले में कीट-व्याधि प्रबंधन के लिए सुझाव दिए गए। वैज्ञानिकों ने बताया कि गरमा जुताई, फसल चक्र, संतुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग, नीम की खली का प्रयोग, खर-पतवार का समय पर नियंत्रण तथा समेकित रोग एवं कीट प्रबंधन के संबंध में विशेष जानकारी दी गई।
वैज्ञानिकों ने राइजोम विविल कीट के प्रबंधन हेतु पीट फॉल ट्रैप के उपयोग का प्रशिक्षण दिया और प्रत्यक्षण भी किया। जैविक विधि से प्रबंधन हेतु 30 cm लंबे केले के तने को काट कर दोनों तरफ बेभेरिया बेसियाना का 20 ग्राम पाउडर लगा कर केले के खेत में प्रति हैक्टेयर ऐसे 100 ट्रैप डालने की सलाह दी गई।
सिगाटोका रोग के प्रबंधन हेतु रोग ग्रसित पत्तियों को हटा कर नष्ट करने के उपरांत टेब्यूकोनजोल और ट्राइफ्लॉसिस्ट्रॉबिन के संयुक्त मिश्रण का एक ग्राम प्रति लीटर पानी के दर से स्टिकर मिला कर छिड़काव करने की सलाह दी गई। पनामा विल्ट के रोकथाम के लिए शुरुआती अवस्था में ट्राईकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो गोबर की खाद में मिलकर पौधा लगाने के समय तथा दूसरे चौथे एवं छठे महीने में ट्राईकोडर्मा मिला हुआ गोबर पांच किलो प्रति पौध के दर से प्रयोग करने की सलाह दी गई।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में डॉ. श्याम बाबू साह, कीट विज्ञान विभाग, डॉ. चंदा कुशवाहा, पौधा रोग विभाग तथा डॉ. शशि प्रकाश, उद्यान (फल) विभाग ने संपादित किया। कृषि विज्ञान केंद्र कटिहार के वैज्ञानिक पंकज कुमार ने इस प्रशिक्षण एवं प्रत्यक्षण का आयोजन किया। इस अवसर पर भंगहा गांव के 130 केला उत्पादक किसानों ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया।
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हिन्दुस्थान समाचार / विनोद सिंह