आत्मनिर्भर भारत की नई बुनावट, स्वदेशी आंदोलन से वैश्विक पहचान तक की गौरवगाथा
- विक्रम कारपेट सभागार में बुनकरों का हुआ सम्मान - उत्साह के साथ मना 11वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस, छलका गर्व मीरजापुर, 7 अगस्त (हि.स.)। कभी 1905 के स्वदेशी आंदोलन में आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना हथकरघा आज विश्व फलक पर अपनी चमक बिखेर रहा है। स्वदेशी
विक्रम कारपेट सभागार में बुनकरों के सम्मान बोलते सीईओ ऋषभ जैन।


- विक्रम कारपेट सभागार में बुनकरों का हुआ सम्मान

- उत्साह के साथ मना 11वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस, छलका गर्व

मीरजापुर, 7 अगस्त (हि.स.)। कभी 1905 के स्वदेशी आंदोलन में आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना हथकरघा आज विश्व फलक पर अपनी चमक बिखेर रहा है। स्वदेशी आंदोलन की आत्मनिर्भरता की भावना को आगे बढ़ाते हुए गुरुवार को नटवां तिराहा स्थित विक्रम कारपेट सभागार में 11वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस गर्व और उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर बुनकरों के हितों को लेकर कई अहम घोषणाएं और योजनाएं सामने आईं। कई बुनकरों को सम्मानित भी किया गया।

उत्तर प्रदेश निर्यात संवर्धन परिषद में कालीन एवं दरी सेक्टर के प्रतिनिधि, विक्रम कार्पेट्स के सीईओ और हथकरघा हस्तशिल्प निर्यातक कल्याण संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष 'अटल सम्मान 2024' से अलंकृत ऋषभ जैन ने कहा कि राष्ट्रीय हथकरघा दिवस केवल भारत के पारंपरिक बुनकरों का सम्मान नहीं, बल्कि स्थानीय से वैश्विक बनने की उस यात्रा का प्रतीक बन गया है जिसमें भारतीय हथकरघा उद्योग तेजी से दुनिया भर में अपनी जगह बना रहा है। उन्होंने कहा कि हथकरघा उद्योग अब केवल ग्रामीण आजीविका का साधन नहीं रहा, बल्कि यह सस्टेनेबल, एथिकल और ह्यूमन-टच युक्त प्रोडक्ट्स की वैश्विक मांग को पूरा करने वाला एक उभरता हुआ क्षेत्र बन चुका है। राष्ट्रीय हथकरघा दिवस वैश्विक बाजार के लिए सांस्कृतिक और आर्थिक निमंत्रण है। उन्होंने बताया कि सात अगस्त 1905 को शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने स्वदेशी उद्योगों और विशेष रूप से हथकरघा बुनकरों को प्रोत्साहित किया था। 2015 में भारत सरकार ने हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्घाटन 7 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चेन्नई में किया था।

स्वदेशी आंदोलन से ग्लोबल ब्रांड तक

ऋषभ जैन ने कहा कि 1905 के स्वदेशी आंदोलन से शुरू हुई आत्मनिर्भरता की यह परंपरा अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की सशक्त उपस्थिति का हिस्सा बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों ने हथकरघा उद्योग को एक बार फिर विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि विश्व हथकरघा दिवस बुनकरों का सम्मान दिवस है। उन्होंने संसद भवन में बिछी मिर्जापुर की कालीन का जिक्र करते हुए स्थानीय बुनकरों की प्रतिभा और योगदान को सराहा।

बुनकरों ने बुना ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना

उद्योग उपायुक्त ने बताया कि हथकरघा कालीन और दरी की आज वैश्विक बाजार में काफी डिमांड है। बुनकरों द्वारा तैयार की गई ये उत्कृष्ट कृतियां न केवल सजावट का माध्यम हैं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत की गवाह भी हैं। वर्ष 2015 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हथकरघा और बुनकरी क्षेत्र को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं। बुनकरों के लिए स्वरोजगार के नए सुअवसर खोले गए हैं।

जेल से जीवन की नई बुनावट, ह्यूमन-सेंट्रिक मॉडल की मिसाल

ऋषभ जैन ने कहा कि जैन मुनि आचार्य विद्यासागर की प्रेरणादायक पहल से 17 जेल के बंदियों को हथकरघा के जरिए न केवल पुनर्वास और रोजगार का अवसर मिला है, बल्कि सम्मान भी। इस मॉडल को 'ह्यूमन-सेंट्रिक इकोनॉमिक मॉडल' के रूप में देखा जा रहा है। हथकरघा न सिर्फ आजीविका का साधन है, बल्कि पुनर्वास और आत्मनिर्भरता का भी मार्ग है।

‘लोकल’ से ‘ग्लोबल’ डिजाइन की उड़ान

जिला उद्योग केंद्र के उद्योग उपायुक्त वीरेंद्र सिंह ने बुनकरों से संवाद कर नवाचार और डिजाइन पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अन्य देशों में बढ़ती रुचि को देखते हुए वहां की संस्कृति और पहचान को ध्यान में रखते हुए डिजाइन तैयार करना जरूरी है। अब नए डिजाइनों को विकसित करने के लिए इंटरनेशनल टेस्ट के अनुसार उत्पाद तैयार किए जाएंगे। यह कदम भारत के हथकरघा उत्पादों को यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, जापान और खाड़ी देशों में और अधिक लोकप्रिय बनाने की दिशा में उठाया गया है।

जल्द खुलेगा बुनकर सहायता केंद्र और ग्लोबल ट्रेनिंग मॉडल

उप्र निर्यात संवर्धन परिषद के प्रतिनिधि ऋषभ जैन के प्रस्ताव पर उद्योग उपायुक्त ने बुनकर सहायता केंद्र खोलने की घोषणा की, जो बुनकरों को उद्योग विभाग, फाइनेंस, डिजाइन और निर्यात प्रशिक्षण से लैस करेगा। प्रशिक्षण देकर प्रमाणपत्र और टूलकिट उपलब्ध कराकर बुनकरों को ग्लोबल स्टैंडर्ड के लिए तैयार किया जाएगा। बुनकरों को उद्योग विभाग की पूरी जानकारी और तकनीकी सहयोग मिलेगा। इस पहल से युवा वर्ग को इस क्षेत्र की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।

फाइनेंसिंग और सरकारी सहयोग

मुद्रा योजना, मुख्यमंत्री युवा योजना और ओडीओपी (एक जनपद एक उत्पाद) जैसी योजनाओं के जरिए बुनकरों को न सिर्फ वित्तीय सहायता मिल रही है, बल्कि जीएसटी और आईटीआर जैसे तकनीकी झंझटों से भी राहत दी जा रही है। केनरा बैंक के चीफ मैनेजर आरके पांडेय ने मुद्रा योजना, मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना समेत कई योजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अब तक 54 नए खाते खोले जा चुके हैं और जीएसटी या आईटीआर की आवश्यकता नहीं है।

बुनकरों की घटती संख्या पर जताई चिंता, किया प्रोत्साहित

ऋषभ जैन ने बुनकरों की घटती संख्या पर चिंता जताई और भारतीय हस्तशिल्प को संरक्षित करने में सहयोग की अपील की। उन्होंने कहा कि चार साल पहले 72,000 बुनकर और लूम थे, अब घटकर 63 हजार रह गए हैं। हमें बुनकरों को प्रोत्साहन देना ही होगा। उन्होंने बुनकरों को प्रोत्साहित करते हुए उनकी कला की सराहना की।

समस्या समाधान का मंच बना कार्यक्रम

कार्यक्रम में बुनकरों ने खुलकर सवाल पूछे और समाधान भी मिले। साथ ही तत्काल खाता खोलने के लिए मंच भी प्रदान किया गया। बुनकरी केवल परंपरा नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता की रीढ़ है। ऐसे कार्यक्रम न सिर्फ जागरूकता बढ़ाते हैं बल्कि बुनकरों को भविष्य की ओर सशक्त रूप से बढ़ने का अवसर भी प्रदान करते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा