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पंचनद संगम पर स्थित महाकालेश्वर मंदिर: पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा आस्था का केंद्र
औरैया, 04 अगस्त (हि. स.)। उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की चकरनगर तहसील के अनेठा गांव के पास स्थित महाकालेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका ऐतिहासिक जुड़ाव महाभारत काल से भी माना जाता है। यह मंदिर प्रसिद्ध पंचनद संगम पर स्थित है, जहां पांच नदियां – यमुना, चंबल, सिंधु, क्वारी और पहुज – एक साथ मिलती हैं। इस स्थल का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इतना गहरा है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं, मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता के अनुसार, पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय इसी क्षेत्र में बिताया था। ऐसा कहा जाता है कि भीम ने इसी इलाके के एक ऐतिहासिक कुएं में बकासुर नामक राक्षस का वध किया था। यही नहीं, भगवान विष्णु ने भी इस स्थल पर भगवान शिव की आराधना कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। यहां स्थित प्राचीन मंदिरों में लगे पत्थर भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की झलक प्रस्तुत करते हैं।
पंचनद संगम, जहां पांच नदियों का मिलन होता है, विश्व में एक अनूठा स्थल माना जाता है। प्रयागराज में जहां तीन नदियों के संगम का महत्व है, वहीं पंचनद को त्रिवेणी जैसा धार्मिक दर्जा भले न मिला हो, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था में इसकी कोई कमी नहीं है। लोग मानते हैं कि यहां की पवित्र डुबकी और महाकालेश्वर के दर्शन से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि तुलसीदास ने यहां रामचरित मानस के कुछ अंशों की रचना की थी। साथ ही पंचनद क्षेत्र को बाबा मुकुंदवन की तपस्थली भी माना जाता है। लोककथाओं के अनुसार, एक बार अंधेरी रात में गोस्वामी तुलसीदास को यहीं पानी पिलाने की अलौकिक घटना हुई थी।
महाकालेश्वर पंचायत के अध्यक्ष बापू सहेल सिंह परिहार बताते हैं कि मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान हुआ था, और आज भी यह स्थल लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। श्रद्धालु यहां पहुंचकर पहले पंचनद में स्नान करते हैं और फिर महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन कर पूजन करते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र सिंह सेंगर का कहना है कि इस मंदिर का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि लोक मान्यताओं के कारण भी अत्यधिक गहरा है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं, और यह मेला इलाके की प्रमुख धार्मिक परंपरा बन चुका है।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील कुमार