संघ में घोष केवल वादन या मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह एक साधना है : आलोक कुमार
-संघ से स्वयंसेवकों में होता है राष्ट्रीय एकता, अनुशासन व चरित्र का निर्माण : बिग्रेडियर संदीप चौधरी -तीन दिवसीय घोष शिविर का वैश्य कॉलेज में हुआ सफल समापन -400 स्वयंसेवकों ने सीखी अनुशासन और राष्ट्रभक्ति की साधना चंडीगढ़, 31 अगस्त (हि.स.)। राष्ट्
घोष वर्ग के समापन अवसर पर मंच पर मौजूद मुख्यातिथि व मुख्य वक्ता।


घोष वर्ग के समापन अवसर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते स्वयंसेवक।


-संघ से स्वयंसेवकों में होता है राष्ट्रीय एकता, अनुशासन व चरित्र का निर्माण : बिग्रेडियर संदीप चौधरी

-तीन दिवसीय घोष शिविर का वैश्य कॉलेज में हुआ सफल समापन

-400 स्वयंसेवकों ने सीखी अनुशासन और राष्ट्रभक्ति की साधना

चंडीगढ़, 31 अगस्त (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय हरिनाद घोषवर्ग का रविवार को रोहतक के वैश्य कॉलेज में समापन हुआ। शिविर में 400 स्वयंसेवकों ने घोष साधना के माध्यम से अनुशासन, एकता और राष्ट्रभक्ति का प्रशिक्षण लिया। सह सरकार्यवाह आलोक कुमार और सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर संदीप चौधरी मुख्य वक्ता और मुख्यातिथि के रूप में शामिल हुए।

संघ के सह सरकार्यवाह आलोक कुमार ने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि “संघ में घोष केवल वादन या मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह एक साधना है, जो मनुष्य को अनुशासन, समन्वय और राष्ट्रहित से जोड़ती है।” उन्होंने वेद मंत्र “सङ्गच्छध्वं संवदध्वं, सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे, संञ्जानाना उपासते।।” का उल्लेख करते हुए कहा कि जब सभी मिलकर एक साथ चलते हैं तो केवल कदम ही नहीं, बल्कि मन भी एक हो जाते हैं। यही घोष साधना का उद्देश्य है- राष्ट्र को एक दिशा में, एक मन होकर आगे बढ़ाना। आलोक कुमार ने कहा कि घोष केवल संगीत का माध्यम नहीं, बल्कि यह वीरता, पराक्रम और राष्ट्रनिर्माण की भावना का प्रतीक है।

उन्होंने बताया कि शंख, ढोल और रणभेरी जैसे वाद्ययंत्र प्राचीन काल से ही ऊर्जा, उत्साह और विजय के संदेशवाहक रहे हैं। युद्धभूमि में भी ये रणवाद्य वीरता और उमंग का संचार करते थे। संघ का घोष दल उसी गौरवशाली परंपरा को आज के समाज तक पहुंचा रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समय के साथ विदेशी ब्रास बैंड का प्रचलन बढ़ा, लेकिन संघ के घोष में जो धुनें बजाई जाती हैं, वे भारतीय रागों पर आधारित होती हैं। यहां तक कि विदेशी धुनों को भी भारतीय स्वरूप में ढालकर उन्हें हमारी सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप प्रस्तुत किया जाता है।

मुख्य अतिथि ब्रिगेडियर संदीप चौधरी घोष प्रदर्शन देखकर अभिभूत हुए और उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि मैं स्वयंसेवकों के इस प्रदर्शन को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। 100 साल से मेरे परिवार की तीन पीढ़ियां फौज के माध्यम से देश सेवा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि संघ में रहकर स्वयंसेवकों में राष्ट्रीय एकता, अनुशासन व चरित्र निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि घोष केवल वाद्ययंत्र बजाने की कला नहीं है, बल्कि यह आत्मबल, अनुशासन और सामूहिक समन्वय की प्रतीक साधना है। ब्रिगेडियर संदीप चौधरी ने को प्रेरित करते हुए कहा कि राष्ट्रहित के लिए संगठित होकर कार्य करना ही संघ की घोष साधना का मूल तत्व है। उन्होंने संघ के 100 वर्ष पूर्ण करने पर शुभकामनाएं दी।

इस अवसर पर क्षेत्र शारीरिक प्रमुख हेमराज, संस्कार भारती के त्रिक्षेत्र संगठन मंत्री विजय कुमार, हरियाणा प्रांत के प्रांत संघचालक प्रताप सिंह, सह प्रांत कार्यवाह प्रीतम कुमार, रोहतक जिला संघचालक देवेंद्र गोयल, पूर्व वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यू, अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी पहलवान योगेश्वर दत्त भी मौजूद रहे।

उल्लेखनीय है कि संघ के शताब्दी वर्ष में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को लेकर स्वयंसेवकों को यह तीन दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। ताकि संघ शताब्दी वर्ष में अधिक से अधिक लोगों की सहभागिता हो सके। तीन दिवसीय इस घोष शिविर में स्वयंसेवकों ने न केवल घोष वादन की तकनीक सीखी, बल्कि अनुशासन, एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना को भी आत्मसात किया। यह शिविर युवाओं के लिए आत्मबल और सामूहिक शक्ति का अनुभव कराने वाला एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण अवसर सिद्ध हुआ।

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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव शर्मा