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माता रानी के चौखट पर 16 गांठ का धागा अर्पित कर 16 दिन के व्रत अनुष्ठान का संकल्प
जीवित्पुत्रिका के निर्जला व्रत के साथ पूजन का समापन
वाराणसी, 31 अगस्त (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी में महालक्ष्मी की आराधना के लिए समर्पित प्रसिद्ध सोरहिया मेले की शुरूआत रविवार से हुई। काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी के रहवासी धन संपत्ति, ऐश्वर्य और संतान सुख की कामना से लक्ष्मीकुंड स्थित रत्न, आभूषणों से जड़ित महालक्ष्मी के दरबार में आधी रात के बाद से ही हाजिरी लगाने के लिए पहुंच गए।
भोर में ही मंदिर के गर्भगृह में मां सरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली के मुखौटे सजाए गए। भोग, पूजन अर्चन के बाद महालक्ष्मी के विग्रह की विधिवत आरती उतारी गई और फिर मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। सुबह से शुरू हुआ दर्शन पूजन का सिलसिला देर रात तक अनवरत चलता रहेगा। दरबार में अलसुबह से ही श्रीसूक्त, स्वर्णाकर्षण के मंत्रों की गूंज रही।
माता महालक्ष्मी के दर्शन पूजन के बाद महिलाओं ने उन्हें चरणों में 16 गांठ का धागा अर्पित कर 16 दिन के व्रत अनुष्ठान का संकल्प लिया। इस बार 15 दिनों तक चलने वाला सोरहिया मेले में महालक्ष्मी की आराधना महिलाएं घर में करने के साथ मंदिर में महालक्ष्मी मंदिर में हाजिरी लगाएंगी।
मंदिर के पुजारी गणेश उपाध्याय के अनुसार, 16 दिवसीय व्रत और पूजन में 16 आचमन के बाद देवी विग्रह की 16 परिक्रमा की जाती है। मातारानी को 16 चावल के दाने, 16 दूर्वा और 16 पल्लव, कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं। व्रत के लिए 16 गांठ का धागा धारण किया जाता है। जो कथा सुनी जाती है, इसमें 16 शब्द होते हैं। 16वें दिन जीवित्पुत्रिका के निर्जला व्रत के साथ पूजन का समापन होता है। काशी में मान्यता है कि कि सोरहिया में माता लक्ष्मी का पूजन करने से घर में सुख, शांति, आरोग्य, ऐश्वर्य एवं स्थिर लक्ष्मी का वास होता है। 16 दिन तक चलने वाले इस सोरहिया मेले का शास्त्र में भी वर्णन है।
प्राचीन काल में महाराजा जिउत की कोई संतान नहीं थी। दुखी होकर महाराजा ने मां लक्ष्मी की पूजा की और माता ने प्रसन्न होकर सपने में दर्शन दिया और सोलह दिन कठिन व्रत करने के लिए कहा, जिसके बाद उन्हें संतान हुई। इसी मान्यता के आधार पर पहले दिन ही 16 गांठ के धागा की पूजा कर अपने दाहिने हाथ में बांधने के बाद 16 दिन का व्रत महिलाएं रखती हैं।
मेले में मां लक्ष्मी की मूर्ति की जमकर बिक्री
लक्ष्मीकुंड पर लगे सोरहिया मेले में मां लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति श्रद्धालुओं ने खरीदी। मिट्टी की मूर्ति को घर तक ले जाने के लिए बांस की डलिया की भी खरीददारी हुई। माता की मूर्ति को घर में स्थापित कर श्रद्धालु महिलाएं 16 दिन तक आराधना करेंगी। व्रत रखने वाली स्त्रियों ने मां लक्ष्मी की मूर्ति में धागा लपेटकर पूरे सोलह दिन पूजा का संकल्प लिया और 16 वें दिन जीवित्पुत्रिका के दिन व्रत का समापन करेंगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी