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उज्जैन, 31 अगस्त (हि.स.)। गणेश उत्सव के बीच शहर के मराठा और महाराष्ट्रीयन परिवारों में इस बार भी माता महालक्ष्मी का आगमन पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता महालक्ष्मी भगवान गणेश की बहन हैं और गणेश चतुर्थी के दो दिन बाद वह अपने मायके आती हैं। तीन दिनों तक चलने वाला यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को भी जीवंत करता है।
महालक्ष्मी पूजन मराठी संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है। मराठा और महाराष्ट्रीयन परिवार इसे पूरे उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं। आस्था है कि महालक्ष्मी के आगमन से घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। अनुराधा नक्षत्र में माता महालक्ष्मी के आगमन पर महाराष्ट्रीयन परिवारों में विशेष तैयारियां की जाती हैं। परिवार की महिलाएं रंगोली से चरण बनाकर देवी का स्वागत करती हैं और उन्हें घर में प्रवेश कराती हैं। इस अवसर पर महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सजी-धजी ढोल-ताशों के साथ देवी को लाती हैं और विधिविधान से पूजन करती हैं।
माता को लगता है 56 भोग
माता महालक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। परिवार की महिलाएं 16 प्रकार की सब्जियों और अनेक मिष्ठानों सहित 56 भोग बनाकर देवी माता को अर्पित करती हैं। इसके साथ ही घर-परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की जाती है। परंपरा के अनुसार इस अवसर पर महिलाएं हल्दी-कुंकुम का आयोजन करती हैं। जिसमें एक-दूसरे को आमंत्रित कर देवी की आराधना की जाती है और मंगलकामनाएं व्यक्त की जाती हैं। यह आयोजन महिलाओं के सामूहिक पूजन और परिवार की खुशहाली से जोड़ा जाता है।
आज होगा विसर्जन
तीन दिवसीय उत्सव के बाद सोमवार को नवमी तिथि के दिन माता महालक्ष्मी का पूजन कर प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा। इस अवसर पर महिलाएं और परिवारजन भक्ति भाव से माता को विदाई देंगे और अगले वर्ष पुन: आगमन का आमंत्रण करेंगे।
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हिन्दुस्थान समाचार / ललित ज्वेल