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श्रीनगर, 31 अगस्त (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने 2003 के कुपवाड़ा फिदायीन हमले में आपराधिक साजिश रचने के आरोप में पूर्व एसएचओ सोगाम गुलाम रसूल वानी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जबकि उनके सह-आरोपी को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है।
न्यायमूर्ति संजीव कुमार और न्यायमूर्ति संजय परिहार की खंडपीठ ने राज्य की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा, निचली अदालत का दृष्टिकोण विकृत और त्रुटिपूर्ण था। अभियोजन पक्ष के साक्ष्य स्पष्ट रूप से स्थापित करते हैं कि तत्कालीन एसएचओ वानी, आतंकवादी की पहचान और उद्देश्यों से पूरी तरह वाकिफ थे और उन्होंने उसे हमला करने की अनुमति दी, जिससे सुरक्षाकर्मियों की हत्या में मौन सहमति बनी।
अदालत ने कहा कि वानी ने जैश-ए-मोहम्मद के एक पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद इब्राहिम उर्फ खलील-उल्लाह के साथ मिलकर साजिश रची थी जिसे 12 मई 2003 को पुलिस की वर्दी पहनाकर एक सरकारी वाहन में सोगाम पुलिस स्टेशन से कुपवाड़ा चौक ले जाया गया था। वहां उसने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी जिसमें सीआरपीएफ की 113 बटालियन के दो जवान कांस्टेबल बी. प्रसाद और बी. रमैया मारे गए और छह अन्य घायल हो गए। इसके बाद उसे मार गिराया गया।
अपने 30 पृष्ठों के फैसले में पीठ ने टिप्पणी की, एक पूरी तरह से हथियारों से लैस आतंकवादी को भीड़ भरे बाजार में बिना रोक-टोक आगे बढ़ने देना, भीड़ पर भरी हुई तोप चलाने जैसा था। इसमें जान से मारने की मंशा साफ़ दिखाई देती है।
यह फैसला घटना के दो दशक से भी ज्यादा समय बाद आया है और 2011 के सत्र न्यायालय के उस फैसले को पलट देता है जिसमें दोनों आरोपियों को असंगतियों का हवाला देते हुए बरी कर दिया गया था। पीठ ने उन कांस्टेबलों के बयानों पर भी गौर किया जिन्होंने हमले में वानी की भूमिका की पुष्टि की थी।
पीठ ने कहा, राज्य ने वानी के मामले में धारा 120-बी और धारा 302 के तहत साजिश को संदेह से परे साबित कर दिया है। साथ ही, पीठ ने दोहराया कि लोगों की जान बचाने की जिम्मेदारी वाले पुलिस अधिकारी द्वारा कानून का पालन न करना आतंकवाद को बढ़ावा देने के समान है।
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हिन्दुस्थान समाचार / बलवान सिंह