Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
नैनीताल, 3 अगस्त (हि.स.)। कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान व वन विज्ञान विभाग में जलवायु परिवर्तन पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला ‘हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन, प्रभाव एवं अनुकूलन’ विषय पर आयोजित की गयी। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में जेएनयू नई दिल्ली के प्रो. सतीश गड़कोटी के मुख्य आतिथि के रूप में कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव आम जनजीवन से लेकर पौधों की कार्यिकी और आकारिकी तक स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है।
उन्होंने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध जनभागीदारी व सजगता पर बल देते हुए इसे मानव अस्तित्व के लिए चुनौतीपूर्ण बताया। परियोजना के प्रमुख अन्वेषक प्रो. आशीष तिवारी ने क्वेरकस फ्लोरीबंडा के बीजों की पुनरुत्पत्ति व जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाली प्रक्रिया पर अपने शोध-आधारित निष्कर्ष साझा किए। सह-अन्वेषक प्रो. ललित तिवारी ने कार्यशाला का संचालन करते हुए बताया कि हिमालय को तीसरा ध्रुव कहा जाता है, किंतु औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि, कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 424 पीपीएम से अधिक हो जाना तथा देश की जलवायु परिवर्तन में 2.23 प्रतिशत की भागीदारी जैसे आंकड़े चिंताजनक हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से पलायन, जनसंख्या में गिरावट व सांस्कृतिक परिवर्तन की स्थिति को भी रेखांकित किया।
कार्यशाला में डॉ. इकरमजीत सिंह, डॉ. श्रुति साह ने भी विचार रखे। इस दौरान प्रतिभागियों ने विश्वविद्यालय परिसर में तेलोंज, पदम व किमो प्रजातियों के पौधों का रोपण भी किया। कार्यशाला में ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय, एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी, महिला महाविद्यालय हल्द्वानी व उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय सहित विभिन्न संस्थानों के डॉ. नवीन पांडे, डॉ. अमित मित्तल, डॉ. बीना तिवारी, डॉ. कृष्णा, डॉ. डसीला, डॉ. प्रीति पंत, डॉ. नीता, डॉ. कुबेर गिनती, डॉ. प्रियंका भट्ट, डॉ. शर्मा, डॉ. अंबिका अग्निहोत्री, डॉ. दीप्ति नेगी, डॉ. नेहा जोशी सहित आरिफ, शाहबाज, त्रिपाठी, जग जीवन, विशाल, राजेश व कुंदन शामिल रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी