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देहरादून, 03 अगस्त (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के शोधकर्ताओं ने पहली बार गंगा नदी का उसके हिमालयी उद्गम से लेकर डेल्टाई छोर तक विश्लेपण किया है।
संस्थान ने अध्ययन के बाद स्पष्ट किया है कि अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि पटना तक गंगा भूजल प्रवाह से पोषित है, न कि हिमनदों के पिघलने से। गंगा नदी भूजल के घटने के कारण नहीं, बल्कि अत्यधिक दोहन, जलमार्ग परिवर्तन और सहायक नदियों की उपेक्षा के कारण सूख रही है।
भूमिगत जल अब भी गंगा की छिपी हुई जीवन रेखा है। प्राकृतिक भूमिगत गोगवन नदी के मध्य भाग में उसके जल स्तर को लगभग 120 प्रतिशत बढ़ा देता है। गर्मियों में नदी का 58 प्रतिशत से अधिक पानी वाष्पीकरण में नष्ट हो जाता है, जो एक चिंताजनक लेकिन अनदेखा घटक है।
आईआईटी रुड़की के भू-विज्ञान विभाग के संकाय सदस्य और प्रमुख शोधकर्ता प्रो. अभयानंद सिंह मौर्य ने कहा कि शोध यह पता लगाने के लिए किया गया था कि गर्म एवं शुष्क ग्रीष्मकाल के महीनों में गंगा कैसे जीवित रहती है।
उत्तर भारत में भूजल के गंभीर क्षरण की चेतावनी देने वाले पूर्व उपग्रह-आधारित अध्ययनों के विपरीत दो दशकों के इन आंकड़ों पर आधारित नए निष्कर्ष मध्य गंगा के मैदन में भूजल स्तर को काफी हद तक स्थिर दर्शाते हैं। उन्होंने बताया कि एक और चौंकाने वाला खुलासा यह है कि ग्रीष्मकाल में सिंधु-गंगा के मैदानों में गंगा के प्रवाह को बनाए रखने में हिमनदों के पिघलने की भूमिका नगण्य है।
हिमालय की तलहटी के आगे हिमनदों से प्राप्त होने वाला प्रवाह लगभग अनुपस्थित है और पटना तक ग्रीष्मकाल में होने वाले प्रवाह को प्रभावित नहीं करता। पटना के बाद घाघरा और गंडक जैसी सहायक नदियां प्रमुख योगदानकर्ता बन जाती हैं। उन्होंने बताया कि यह अध्ययन हाइड्रोलाजिकल प्रोसेसेस में प्रकाशित हो चुका है।
ये प्रयास करने होंगे
प्रो. अभयानंद सिंह मौर्य ने कहा कि इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि भारत गंगा को स्थायी बनाना चाहता है तो उसे अपने जलभृतों का संरक्षण एवं पुनर्भरण करना होगा। मुख्य नदी चैनल में पर्याप्त जल छोड़ना होगा और लुप्त हो चुकी सहायक नदियों के नेटवर्क को पुनर्जीवित करना होगा। गंगा का भविष्य केवल ग्लेशियरों पर ही नहीं. बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम धरातल पर जल प्रबंधन कैसे करते हैं।
नदियों का पुनरुद्धार और भूजल प्रबंधन में सुधार
यह शोध नमामि गंगे, अटल भूजल योजना एवं जल शक्ति अभियान जैसे कई राष्ट्रीय अभियानों को वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है, जिनका उद्देश्य नदियों का पुनरुद्धार एवं भूजल प्रबंधन में सुधार करना है। यह निष्कर्ष सहायक नदियों को पुनर्जीवित करने, बैराजों से पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने और जलभूतों को पुनर्भरण के लिए स्थानीय जल निकायों के संरक्षण का पुरजोर समर्थन करता है।
भूजल का महत्व:
अध्ययन में पाया गया कि पटना तक गंगा का प्रवाह मुख्य रूप से भूजल से पोषित होता है, न कि ग्लेशियरों के पिघलने से।
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हिन्दुस्थान समाचार / विनोद पोखरियाल