हिसार : हकृवि का ढैंचा बीज अब आंध्रप्रदेश में बढ़ाएगा भूमि की उर्वरा शक्ति : प्रो. बीआर कम्बोज
ढैंचा की डीएच-1 किस्म का आंध्राप्रदेश की नामी कंपनी से हुआ समझौताहिसार, 25 अगस्त (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किए गए उन्नत किस्मों के बीज देश भर में अपना परचम लहरा रहे हैं। विश्वविद्यालय के उन्नत बीजों का देश में प्रचार-प्रसार कर
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज के साथ कंपनी के अधिकारी व विश्वविद्यालय के अधिकारीगण।


ढैंचा की डीएच-1 किस्म का आंध्राप्रदेश की नामी कंपनी से हुआ समझौताहिसार, 25 अगस्त (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किए गए उन्नत किस्मों के बीज देश भर में अपना परचम लहरा रहे हैं। विश्वविद्यालय के उन्नत बीजों का देश में प्रचार-प्रसार करने के लिए विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी कंपनी के साथ समझौते किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में विश्वविद्यालय ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए ढैंचा की डीएच-1 किस्म का मुरलीधर सीड्स कॉरपोरेशन कुरनूल आंध्रप्रदेश के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।ढैंचा की खेती किसानों के लिए वरदानिश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने साेमवार काे बताया कि ढैंचा हरी खाद के लिए उगाया जाता है। यह एक दलहनी फसल है, जो मृदा की उर्वरता बढ़ाने में मदद करता है। ढैंचा की खेती मुख्यतः: खरीफ के मौसम में की जाती है और इसे हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है और उर्वरता में सुधार होता है। ढैंचा मिट्टी की संरचना के सुधार में विशेष भूमिका निभाता है। विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे शोध कार्यों, उन्नत किस्मों के बीजों तथा नवीनतम तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिए निजी क्षेत्र की कम्पनियों के साथ समझौते किए जा रहे हैं। इससे किसानों एवं ग्रामीण युवाओं को अतिरिक्त रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं। यह एमओयू किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा तथा खेती को लाभकारी व्यवसाय बनाने में सहायक सिद्ध होगा।ढैंचा नाइट्रोजन की आपूर्ति बढ़ाने में सहायककुलपति ने बताया कि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को कृषि उपकरणों, जैविक खेती, सिंचाई तकनीक और फसल प्रबंधन हेतु नवीनतम जानकारी दी जा रही है। विश्वविद्यालय किसानों की पैदावार में बढ़ोतरी करने के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए भी सदैव प्रयासरत रहता है। उन्होंने बताया कि ढैंचा की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु होते हैं जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को भूमि में स्थिर रखते हैं जिससे भूमि में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है। ढैंचा जैविक पदार्थों में वृद्धि, भूमि की जल धारण क्षमता में बढ़ोतरी, सूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति तथा खरपतवार नियंत्रण में भी सहायक है। उन्होंने बताया कि ढैंचा भूमि की प्राकृतिक उर्वरता को बढ़ाकर रासायनिक खादों की आवश्यकता को भी कम करता है।इस कंपनी के साथ हुआ समझौताकुलपति प्रो. बीआर कम्बोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एसके पाहुजा ने जबकि मुरलीधर सीड्स कॉरपोरेशन की तरफ से कंपनी के सीईओ मुरलीधर रेड्डी ने हस्ताक्षर किए। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय द्वारा उपरोक्त कंपनी के साथ बाजरे की एचएचबी-67 संशोधित 2 किस्म का उन्नत बीज किसानों तक पहुंचाने के लिए पहले से ही समझौता किया हुआ है।ये अधिकारी रहे मौजूदइस अवसर पर कुलसचिव डॉ. पवन कुमार, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. रमेश कुमार, बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्र मोर, आईपीआर सेल के प्रभारी डॉ. योगेश जिंदल, डॉ. राजेश आर्य व डॉ. जितेन्द्र भाटिया उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर