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— एक फीसद से भी कम मरीजों में पाया जाता है यह दुर्लभ ट्यूमर
कानपुर, 25 अगस्त (हि.स.)। कैंसर युक्त टृयूमर के आपरेशन तो बहुत होते हैं, लेकिन अगर स्पिंडल सेल ट्यूमर है तो घातक के साथ दुलर्भ भी है। ऐसा इसलिए कि इसके सेल बहुत तेजी से बढ़ते हैं और यह सिर्फ एक फीसद से भी कम मरीजों में पाया जाता है। ऐसे में स्पिंडल सेल ट्यूमर से पीड़ित मरीज कैलाश चन्द्र को निजी अस्पताल के चिकित्सकों ने इलाज करने से मना कर दिया और जीएसवीएम मेडिकल कालेज ने सहारा दिया। मेडिकल कालेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला की टीम ने सोमवार को छह घंटे तक दुर्लभ स्पिंडल सेल ट्यूमर का सफल आपरेशन कर मरीज को नया जीवन देने में सफल रही।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, एलएलआर हॉस्पिटल एवं पीएमएसएसवाई, कानपुर ने 69 वर्षीय कैलाश चंद्र का सफल ऑपरेशन किया, जिनके बाएं ऊपरी जबड़े (मैक्सिला) में दुर्लभ स्पिंडल सेल ट्यूमर पाया गया था। मरीज को पहले दो निजी अस्पतालों ने भर्ती करने से मना कर दिया था, जिसके बाद उन्हें जीएसवीएम में रेफर किया गया। डॉक्टरों ने मरीज की लेफ्ट हेमी-मैक्सिलेक्टॉमी की तथा उसके बाद एंटेरोलैटरल थाई (एएलटी) फ्लैप रिकंस्ट्रक्शन किया। इस प्रक्रिया में जांघ से मांसपेशी और ऊतक निकालकर माइक्रोवास्कुलर तकनीक से गाल में प्रत्यारोपित किया गया। लगभग छह घंटे चले इस ऑपरेशन में न्यूनतम रक्तस्राव हुआ और मरीज के चेहरे की कार्यात्मक एवं सौंदर्यपूर्ण बहाली सुनिश्चित हुई। मरीज फिलहाल स्थिर हैं और स्वस्थ हो रहे हैं। यह उपलब्धि जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की उन्नत स्वास्थ्य सेवाओं और शल्य चिकित्सा विशेषज्ञता का प्रमाण है।
यह सर्जरी डॉ. संजय काला (डीन एवं प्राचार्य), डॉ. हरेंद्र कुमार (प्रोफेसर, ईएनटी), डॉ. प्रेम शंकर (प्रोफेसर, प्लास्टिक सर्जरी) और डॉ. सुषांत लूथरा (प्लास्टिक सर्जन, सर्जरी विभाग) ने संयुक्त रुप से की।
--एक फीसद से भी कम मरीजों में पाया जाता है यह दुर्लभ ट्यूमर
प्राचार्य प्रो. संजय काला ने बताया कि मरीज कैलाश चन्द्र की हिस्ट्री सामान्य थी न तो वह गुटखा पान मसाला खाते हैं और न ही अन्य किसी प्रकार नशा हैं। इसके बावजूद उनके जबड़े के ऊपरी भाग में यह दुर्लभ स्पिंडल सेल ट्यूमर पाया गया। इसकी सर्जरी करना इसलिए बेहद कठिन माना जाता है कि इसके सेल बहुत तेजी से बढ़ते हैं। ऐसे में प्रभावित क्षेत्र से अधिक भाग को निकालना पड़ता है और इस पर कीमोथेरेपी भी कारगर नहीं है। यह ट्यूमर अत्यंत दुर्लभ है और केवल एक फीसद से भी कम मरीजों में पाया जाता है, जिससे यह केस विशेष और चुनौतीपूर्ण बन गया।
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हिन्दुस्थान समाचार / अजय सिंह