दर्शन सिर्फ शास्त्र नहीं, जीवन को दिशा देने वाला मार्ग : प्रो. द्वारकानाथ
एमजीयूजी में चतुर्थ स्थापना दिवस साप्ताहिक समारोह के उपलक्ष्य में अतिथि व्याख्यान का आयोजन
एमजीयूजी में चतुर्थ स्थापना दिवस साप्ताहिक समारोह के उपलक्ष्य में अतिथि व्याख्यान का आयोजन*


एमजीयूजी में चतुर्थ स्थापना दिवस साप्ताहिक समारोह के उपलक्ष्य में अतिथि व्याख्यान का आयोजन*


एमजीयूजी में चतुर्थ स्थापना दिवस साप्ताहिक समारोह के उपलक्ष्य में अतिथि व्याख्यान का आयोजन*


एमजीयूजी में चतुर्थ स्थापना दिवस साप्ताहिक समारोह के उपलक्ष्य में अतिथि व्याख्यान का आयोजन*


गोरखपुर, 25 अगस्त (हि.स.)। युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज स्मृति सप्तदिवसीय व्याख्यानमाला तथा महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) के चतुर्थ स्थापना दिवस सप्ताह समारोह के अंतर्गत सोमवार को गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) के सभागार में “दर्शन: समग्र जीवन की आधारशिला” विषय पर अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. द्वारकानाथ तिवारी ने कहा कि दर्शन केवल शास्त्र नहीं, बल्कि समग्र जीवन की दिशा प्रदान करने वाला मार्ग है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय दर्शन हमें यह सिखाता है कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों से ही सफल नहीं होता, बल्कि आत्मिक शांति, नैतिक आचरण और समाज के प्रति उत्तरदायित्व ही उसकी असली पहचान है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गीता का कर्मयोग हमें कर्तव्य पालन की प्रेरणा देता है, उपनिषद आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझाते हैं और जैन-बौद्ध दर्शन करुणा एवं अहिंसा के महत्व को स्थापित करते हैं। इसी प्रकार आज के तनावग्रस्त जीवन में यदि दर्शन और योग को व्यवहारिक जीवन में उतारा जाए तो यह मानसिक शांति, पारस्परिक सद्भाव और सामाजिक समरसता की नींव रख सकता है।

प्रो. तिवारी ने कहा कि वेद मानव जीवन के लिए आचार संहिता प्रस्तुत करते हैं। यदि हम अपने ज्ञान एवं विवेक का समुचित प्रयोग करें तो न केवल व्यक्तिगत दुःखों का निवारण संभव है, बल्कि समाज में स्थायी शांति और सद्भाव भी स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया कि लोभ, अहंकार और वासनाएँ ही दुख का कारण हैं, जबकि संयम, साधना और आत्मचिंतन से जीवन में संतुलन संभव है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे वैदिक आदर्शों को आत्मसात कर आत्मोन्नति तथा राष्ट्रोत्थान में योगदान दें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गिरिधर वेदांतम ने कहा कि दर्शन का वास्तविक उद्देश्य जीवन को संतुलित, अनुशासित और सार्थक बनाना है। उन्होंने कहा कि आज की तेज़ रफ़्तार और भौतिकतावादी दुनिया में समग्र जीवन की आधारशिला के रूप में दर्शन विषय अत्यंत प्रासंगिक है, क्योंकि यह व्यक्ति को आत्मचिंतन, नैतिक मूल्यों और समाजोपयोगी जीवन की ओर प्रेरित करता है।

इस अवसर पर आचार्य साध्वी नन्दन पाण्डेय ने स्वागत भाषण देते हुए मुख्य अतिथि का अभिनंदन किया और विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दर्शन की शिक्षा से ही जीवन के विविध आयामों में संतुलन एवं समरसता संभव है।

अंत में डॉ. विनम्र शर्मा ने सभी अतिथियों, प्रतिभागियों एवं आयोजन समिति का आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन शिवानी ने किया। इस अवसर पर उप प्राचार्य डॉ. सुमित, डॉ. शांति भूषण, डॉ. संध्या पाठक, डॉ. नवीन, डॉ. गोपीकृष्ण, डा. अर्पित, डॉ. त्रिविक्रम मणि त्रिपाठी सहित सभी प्राध्यापक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / प्रिंस पाण्डेय