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गाजर घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह का आयोजनहिसार, 23 अगस्त (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग एवं खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर द्वारा संयुक्त रूप से गाजर घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह मनाया गया। इस दौरान इस घास से संबंधित जानकारियां दी गई।अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने शनिवार काे बताया कि प्रकृति में अत्यंत महत्वपूर्ण वनस्पतियों के अलावा कुछ वनस्पतियां ऐसी भी है जो धीरे-धीरे एक अभिशाप का रूप लेती जा रही है। बरसात का मौसम शुरू होते ही गाजर की तरह की पत्तियों वाली एक वनस्पति काफी तेजी से बढऩे और फैलने लगती है। इसे गाजर घास, या चटक चांदनी आदि के नाम से जाना जाता है। गाजर घास को सभी के लिए गंभीर समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरे वर्ष भर खाली स्थान एवं अनुपयोगी भूमि पर उगता और फलता फूलता रहता है।सस्य विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार यादव ने गाजर घास के प्रवेश से लेकर इसकी विकरालता और इससे कृषि, मानव और पशुधन पर होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि लगातार इस घास के सम्पर्क में आने से मनुष्यों में डर्मेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा जैसी अनेक गंभीर बीमारियां हो रही हैं।अखिल भारतीय खरपतवार अनुसंधान परियोजना हिसार केंद्र के मुख्य अन्वेषक डॉ. टोडरमल पूनिया ने गाजर घास के निवारण के लिए उपयोग में लाए जाने वाले रसायनों के बारे में जानकारी दी। डॉ. पारस कम्बोज ने जैविक कीट नियंत्रण द्वारा गाजर घास की रोकथाम पर विस्तार से प्रकाश डाला। सस्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ. एसके ठकराल, डॉ. वीरेंद्र हुड्डा, डॉ. आरएस दादरवाल, डॉ. कौटिल्य, डॉ. भगत सिंह, डॉ. सुशील कुमार, डॉ. रामधन, डॉ. नीलम, डॉ. रितांबरा, डॉ. सतपाल, डॉ. श्वेता, डॉ. मूली देवी, डॉ. कविता, डॉ. सत्यनारायण सहित अन्य कर्मचारी और विद्यार्थी भी कार्यक्रम में मौजूद रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर