नागपुर में ऐतिहासिक ‘बड़ग्या-मारबत’ उत्सव धूमधाम से मनाया गया
नागपुर, 23 अगस्त (हि.स.)। महाराष्ट्र के नागपुर की करीब 145 वर्ष पुरानी परंपरा ''बड़ग्या-मारबत'' उत्सव शनिवार को बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। यह ऐतिहासिक उत्सव पौराणिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। आज नागपु
नागपुरातील मारबत उत्सवाचे छायाचित्र


नागपुर, 23 अगस्त (हि.स.)। महाराष्ट्र के नागपुर की करीब 145 वर्ष पुरानी परंपरा 'बड़ग्या-मारबत' उत्सव शनिवार को बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। यह ऐतिहासिक उत्सव पौराणिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। आज नागपुर के जागनाथ बुधवारी क्षेत्र से पीली मारबत और इतवारी के नेहरू प्रतिमा क्षेत्र से काली मारबत की शोभायात्रा निकाली गई। दोनों शोभायात्राएं नेहरू पुतला चौक पर एक-दूसरे से मिलीं। इस अवसर पर हजारों लोग उत्सव मे शामिल हुए।

दुनिया में केवल नागपुर में मनाए जाने वाले इस अद्वितीय उत्सव की शुरुआत वर्ष 1881 में हुई थी। तेली समाज की पहल पर आरंभ हुए इस उत्सव में समाज की बुरी प्रवृत्तियों, बीमारियों और अंधविश्वास के खिलाफ विरोध स्वरूप 'काली मारबत' बनाई जाती है, जबकि अच्छे मूल्यों को अपनाने के प्रतीक के रूप में 'पीली मारबत' का निर्माण किया जाता है। इनकी शोभायात्रा के दौरान ईड़ा पीड़ा, रोग राई, जादूटोना ले जाओ रे मारबत! जैसे नारों से वातावरण गूंज उठा।

इस उत्सव के माध्यम से लोग एकजुट होकर समाज की बुरी प्रथाओं, अंधविश्वासों और संकटों का सामूहिक रूप से विरोध व्यक्त करते हैं। यह परंपरा हर वर्ष पोला पर्व के दूसरे दिन होती है। नागपुर के साथ-साथ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में लोग इस आयोजन में भाग लेते हैं।

बड़ग्या की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस उत्सव में 'बड़ग्या' नामक एक

अन्य पुतले का भी विशेष महत्व है। इतिहास के अनुसार भोसले राजवंश की बांकाबाई नामक महिला ने अंग्रेजों से मिलीभगत की थी। उनके इस कृत्य के विरोध में उनका पुतला बनाकर जुलूस निकाला जाता है और बाद में उसका दहन किया जाता है। बांकाबाई के पति ने भी इस कृत्य का विरोध नहीं किया था, इसलिए उनके भी पुतले को 'बड़ग्या' कहा जाता है। इस वर्ष ‘लव-जिहाद’, अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ, पहलगाम में हुआ आतंकी हमला और मतदाता सूची में हुई गड़बड़ियों पर आधारित बड़ग्या बनाए गए थे।

धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ

कुछ विद्वानों के अनुसार काली मारबत विनाशकारी प्रवृत्तियों का प्रतीक है जबकि पीली मारबत रक्षक शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। यह मान्यता महाभारत काल की पूतना मावशी की कथा से भी जोड़ी जाती है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि जैसे लोकमान्य टिळक ने पुणे में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की थी, वैसे ही नागपुर में 'मारबत' उत्सव की शुरुआत की गई, ताकि लोग एकजुट हो सकें।

विशेष बात यह है कि यह परंपरा गणेशोत्सव से भी पुरानी मानी जाती है। नागपुरवासियों ने इस परंपरा को आज भी जीवंत रखा है और यह उत्सव सामाजिक संदेश देने वाला और एकता का प्रतीक बन चुका है।------------------

हिन्दुस्थान समाचार / मनीष कुलकर्णी