पाकिस्तान की संवैधानिक पीठों में न्यायाधीशों के चयन के मानदंड तय करने के प्रयास विफल
इस्लामाबाद, 23 अगस्त (हि.स.)। पाकिस्तान न्यायिक आयोग (जेसीपी) की एक उप समिति संवैधानिक पीठों (सीबी) में न्यायाधीशों के चयन के लिए मानदंड विकसित करने में विफल रही। अधिकांश सदस्यों ने माना कि संविधान उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। पांच सदस्यीय स
पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जमाल खान मंडोखैल। फोटो - फाइल


इस्लामाबाद, 23 अगस्त (हि.स.)। पाकिस्तान न्यायिक आयोग (जेसीपी) की एक उप समिति संवैधानिक पीठों (सीबी) में न्यायाधीशों के चयन के लिए मानदंड विकसित करने में विफल रही। अधिकांश सदस्यों ने माना कि संविधान उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। पांच सदस्यीय समिति उप समिति के अन्य सदस्यों में पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (एजीपी) मंसूर अवान, सत्तारूढ़ दल के सीनेटर फारूक एच. नाइक, विपक्षी दल के सीनेटर अली जफर और पाकिस्तान बार काउंसिल (पीबीसी) के प्रतिनिधि अहसान भून शामिल हैं। इस समिति के अध्यक्ष पाकिस्तान उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जमाल खान मंडोखैल हैं।

द ट्रिब्यून एक्सप्रेस अखबार की खबर के अनुयार, उप समिति की यह बैठक गुरुवार को हुई। पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (सीजेपी) याह्या अफरीदी ने न्यायमूर्ति मंदोखैल के नेतृत्व में दो उप समितियों का गठन किया था। इनका उद्देश्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वार्षिक प्रदर्शन के मूल्यांकन के तौर-तरीकों का मसौदा तैयार करना और सीबी में न्यायाधीशों के चयन के लिए मानदंड तैयार करना है।

सूत्रों के अनुसार, उप समिति के तीन सदस्यों अवान, भून और नाइक ने संवैधानिक निषेध का हवाला देते हुए नियमों के निर्माण का विरोध किया। हालांकि जफर ने तीन सदस्यों से असहमति जताई। इसके बाद यह मामला जेसीपी को वापस भेज दिया गया। नियम बनाने को लेकर वकीलों में भी मतभेद हैं। एक वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि नियम सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आलोक में बनाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि 26वें संविधान संशोधन के लागू होने के बाद से उच्चतम न्यायालय और सिंध उच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठों के न्यायाधीशों की नियुक्ति बिना किसी तय चयन प्रक्रिया के की जा रही है। ऐसी धारणा है कि सरकार उन वरिष्ठ न्यायाधीशों को चयन प्रक्रिया से बाहर करने में सफल रही जो किसी भी हाई-प्रोफाइल मामले में सरकार पर सवाल उठा सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पाठों के प्रदर्शन से संघीय सरकार पूरी तरह संतुष्ट है। इन पीठों ने सैन्य अदालतों में नागरिकों के मुकदमों को बरकरार रखा। विभिन्न उच्च न्यायालयों से न्यायाधीशों के इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरण को मंजूरी दी। यही नहीं 2024 के आम चुनाव के बाद पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) को आरक्षित सीटें देने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलट दिया।

वकील रिदा हुसैन ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कुछ ही दिन पहले पदोन्नत हुए एक न्यायाधीश को संवैधानिक पीठ में नामित किया जा सकता है, जबकि व्यापक संवैधानिक विशेषज्ञता वाले कई वरिष्ठ न्यायाधीशों को इससे दूर रखा गया। उन्होंने कहा, 26वें संशोधन में ऐसा कुछ भी नहीं है जो संवैधानिक पीठों में न्यायाधीशों के नामांकन के नियम बनाने से रोकता हो।

वह कहती हैं कि सरकार का मानना ​​है कि न्यायाधीशों के नामांकन में पूर्ण विवेकाधिकार होना चाहिए। इसके पीछे की मंशा यह है कि न्यायाधीशों को पूरी तरह से राजनीतिक कारणों से नामांकित करने की अनुमति मिल सके, जिनका योग्यता से कोई लेना-देना न हो। रिदा ने जेसीपी से सवाल किया कि न्यायमूर्ति अली बाकिर नजफी को उच्चतम न्यायालय में शपथ लेने के उसी हफ्ते संवैधानिक पीठ में क्यों नामित किया गया? न्यायमूर्ति अमीनुद्दीन खान को ऐसी पीठ का प्रमुख क्यों नामित किया गया? महत्वपूर्ण संवैधानिक अनुभव वाले वरिष्ठ न्यायाधीशों को क्यों बाहर रखा जा रहा है? वह कहती हैं कि जेसीपी के सरकारी सदस्यों के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है। इसलिए वे मानदंड तय नहीं करना चाहते।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद