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गयाजी, 22 अगस्त (हि.स)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज बिहार के गयाजी जिले को बड़ी सौगात दी। बोधगया स्थित मगध विश्वविद्यालय परिसर से उन्होंने करीब 13 हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया। इस मौके पर उन्होंने गयाजी से दिल्ली के बीच चलने वाली अमृत भारत एक्सप्रेस और कोडरमा से वैशाली तक की नई फास्ट मेमू ट्रेन को हरी झंडी दिखाई। इसके साथ ही गंगा पर बने छह लेन वाले नये पुल और वैशाली-कोडरमा के बीच बुद्ध सर्किट ट्रेन की भी शुरुआत की। यह परियोजनाएं न सिर्फ राज्य के बुनियादी ढांचे को मजबूती देंगी बल्कि गयाजी जैसे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक नगर को विकास की नई पहचान भी दिलाएंगी।
गयाजी यूं ही नहीं कहलाता, यह वह स्थान है जहां ज्ञान, मोक्ष और आध्यात्मिक शांति का मार्ग मिलता है। यहां इतिहास, धर्म, संस्कृति और आधुनिक विकास की धारा एक साथ बहती है। बिहार की राजधानी पटना के बाद गया जी राज्य का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। झारखंड की सीमा से सटा यह इलाका फाल्गु नदी के तट पर बसा है। इसका उल्लेख न केवल महाकाव्यों- रामायण और महाभारत में मिलता है बल्कि मेगस्थनीज, फाह्यान और ह्वेनसांग जैसे विदेशी यात्रियों के लेखन में भी मिलता है। गयाजी से 17 किलोमीटर दूर बोधगया स्थित है जहां भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। इसी वजह से यह नगर पूरी दुनिया में आस्था और अध्यात्म का केंद्र बना।
वर्ष 1764 के बक्सर युद्ध के बाद बिहार का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेजों के पास चला गया। वर्ष 1865 में गयाजी को एक पूर्ण जिले के रूप में मान्यता मिली और 1976 में इसे विभाजित कर औरंगाबाद और नवादा जिले बनाए गए। गयाजी का धार्मिक महत्व हमेशा से प्रमुख रहा है। मौर्यकाल में सम्राट अशोक ने यहीं से बौद्ध धर्म का विस्तार किया। यहां खुदाई के दौरान अशोक के आदेश पत्र भी मिले हैं। 18वीं सदी में अहिल्याबाई होल्कर ने विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
गयाजी को मोक्ष की धरती कहा जाता है। मान्यता है कि जब तक पितरों का श्राद्ध यहां न हो, उन्हें मुक्ति नहीं मिलती। यही कारण है कि हर साल देश-विदेश से लाखों लोग यहां पिंडदान करने आते हैं। कभी गया जी में 360 वेदियां थीं, आज 48 बची हैं, जहां पिंडदान किया जाता है। फल्गु नदी के तट पर पितृपक्ष के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। कथा है कि माता सीता ने यहीं बालू का पिंड बनाकर राजा दशरथ का श्राद्ध किया था, जिससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
गयाजी की पहचान गयासुर की कथा से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि गयासुर नामक राक्षस ने ब्रह्मा से वरदान लिया था कि उसके दर्शन मात्र से लोग पाप मुक्त हो जाएं। देवताओं ने समाधान के लिए उससे यज्ञ करने का निवेदन किया तो गयासुर अपने शरीर को यज्ञभूमि बना लेटा और पांच कोस तक फैल गया। तब भगवान विष्णु ने अपने चरण गयासुर के शरीर पर रखे और यहीं विष्णुपद मंदिर की स्थापना हुई। तभी से यह भूमि मोक्ष और पापमोचन का केंद्र बनी।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रशांत शेखर