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जगदलपुर, 22 अगस्त । छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसे धान का कटोरा कहा जाता है। यहां की संस्कृति और परंपराएं खेती-किसानी और
प्रकृति से जुड़ी हुई हैं । यहां के त्यौहार न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं, बल्कि किसानों और उनके पशुधन के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को भी व्यक्त करते हैं । यह पर्व विशेष रूप से किसानों और उनके बैलों के प्रति समर्पित है, जो खेती-किसानी में उनकी सबसे महत्वपूर्ण सहायता करते हैं। बच्चों के लिए पाेला पर्व में मिट्टी से बने खिलौनों, जैसे बैल और रसोई के बर्तन इन दिनाें बाजार में विक्रय के लिए बड़ी मात्रा में मिलना समृद्ध सांस्कृतिक मूल्याें एवं परंपरा के निर्वहन का घाेतक हैं। कुछ क्षेत्रों में इस दिन बैल दौड़ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, पोला पर्व का महत्व केवल धार्मिक परंपरा या कृषि तक सीमित नहीं है, यह सामाजिक, सांस्कृतिक, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। आधुनिक युग में जहां मशीनों ने खेती-किसानी में बैलों की भूमिका को कुछ हद तक कम कर दिया है, फिर भी पोला पर्व अपनी शताब्दियाें पुरानी सांस्कृतिक मूल्याें के कारण आज भी प्रासंगिक है।यह त्योहार कल शनिवार को मनाया जायेगा।
जनसंपर्क विभाग के सहायक संचालक अर्जुन पाण्डेय ने बताया कि पोला छत्तीसगढ़ का एक पारंपरिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो भाद्रपद मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से कृषि और पशुधन, विशेषकर बैलों की पूजा से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ के अलावा, यह पर्व महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। यह त्यौहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह उनकी मेहनत और पशुधन के योगदान को सम्मान देने का अवसर प्रदान करता है। पोला पर्व का मूल उद्देश्य खेती-किसानी में बैलों के योगदान को मान्यता देना और उनकी पूजा करना है। यह छत्तीसगढ़ की सनातन परंपराओं और कृषि संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। बैल, जो खेती-किसानी में किसानों के सबसे बड़े सहायक हैं, इस दिन विशेष सम्मान के पात्र बनते हैं ।
अर्जुन पाण्डेय ने बताया कि यह पर्व मानसून के समापन और खरीफ फसल की बोआई के बाद मनाया जाता है। पोला पर्व के दिन किसान अपने बैलों को नदी या तालाब में ले जाकर स्नान कराते हैं। इसके बाद बैलों को रंगों, कपड़ों, घुंघरू, घंटियों, और कौड़ियों से सजाया जाता है। उनके सींगों पर पॉलिश और रंग लगाए जाते हैं, और गले में आभूषण पहनाए जाते हैं। बैलों को विशेष भोजन, जैसे गुड़ और चावल का मिश्रण, खिलाया जाता है। जिनके पास बैल नहीं होते, वे मिट्टी या लकड़ी से बने बैलों की पूजा करते हैं। पूजा में चंदन का टीका, धूप, अगरबत्ती, और माला का उपयोग किया जाता है। घरों में महिलाएं पारंपरिक पकवान बनाती हैं, जैसे चीला, गुड़हा, अनरसा, सोहरी, चौसला, ठेठरी, खुरमी, बरा, मुरकु, भजिया, तसमई आदि। ये व्यंजन चावल, गुड़, तिल, और अन्य स्थानीय सामग्रियों से तैयार किए जाते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे