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कोलकाता, 18 अगस्त (हि.स.)। अडाणी समूह के चेयरमैन गौतम अडाणी ने सोमवार को आईआईटी खड़गपुर के प्लेटिनम जुबली समारोह में छात्रों और प्राध्यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया पारंपरिक युद्धों से आगे बढ़कर अब तकनीक आधारित ताकत की जंग में उतर चुकी है। यह तय करेगा कि भविष्य में किस देश का वर्चस्व होगा।
अडाणी ने कहा कि आज की लड़ाइयां खाइयों में नहीं, बल्कि सर्वर फार्म में लड़ी जाती हैं। ‘‘हथियार अब बंदूकें नहीं बल्कि एल्गोरिद्म हैं, साम्राज्य जमीन पर नहीं बल्कि डेटा सेंटर में बनते हैं, और सेनाएं बटालियन नहीं बल्कि बॉटनेट हैं।’’ उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, आप आजादी के नए सिपाही हैं। आपका नवाचार, आपका सॉफ़्टवेयर कोड और आपके विचार ही आज के हथियार हैं। आप तय करेंगे कि भारत अपनी तकदीर खुद लिखेगा या उसे दूसरों के हवाले करेगा।
अडाणी ने कहा कि आने वाला दशक बेहद तेज बदलावों का होगा। कई बड़ी कंपनियां, जो आज अजेय लगती हैं, गायब हो जाएंगी। वजह संसाधनों की कमी नहीं होगी, बल्कि इस दौड़ में तेजी और पैमाने से प्रतिस्पर्धा न कर पाना होगा। यही सच शैक्षणिक संस्थानों पर भी लागू होता है। अब केवल मेधावी स्नातक तैयार करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि ऐसे देशभक्त स्नातक तैयार करने होंगे जिनके पास विचार हों, अनुशासन हो और भारत को अडिग बनाने का संकल्प हो।’’
उन्होंने चेताया कि रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के दौर में लागत का लाभ टिकाऊ नहीं रहेगा और कंपनियां रातों-रात अपनी प्रतिस्पर्धा खो सकती हैं।
अडाणी ने कहा, ‘‘हमें हर उद्योग को फिर से गढ़ना होगा, हर कारोबार को नए सिरे से सोचना होगा और हर नियम को फिर से लिखना होगा ताकि भारत सिर्फ़ भागीदार नहीं बल्कि अगुवा बन सके।’’
उन्हाेंने सवाल उठाया कि जब ज्ञान एक वस्तु बन जाए, जब कौशल डाउनलोड किया जा सके और एआई सेकंडों में इंजीनियरिंग की समस्याएं सुलझा दे, तब इंजीनियरिंग या तकनीकी डिग्री का मूल्य क्या रह जाएगा? ‘‘तकनीकी ज्ञान की उम्र सालों से घटकर अब महीनों और शायद हफ़्तों तक सिमट गई है। ऐसे में शैक्षणिक सिद्धांत और उद्योग की जरूरतों के बीच की खाई तेजी से बढ़ रही है। नई मुद्रा है – साहसिक विचारों की प्रचुरता, तेज अनुकूलन और लगातार पुनर्निर्माण की क्षमता।
छात्रों और शिक्षकों से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, भारत को सबसे मेधावी मस्तिष्कों की ज़रूरत है और आप प्राध्यापक इन मस्तिष्कों के संरक्षक हैं। इन्हें पाठ्य पुस्तक से आगे सोचने, तेजी से आविष्कार करने और खोज की हिम्मत को राष्ट्रीय कर्तव्य मानने की ट्रेनिंग दें। यह समय हमारी संस्थाओं की विरासत को छोड़ने का नहीं, बल्कि भविष्य को नए ढंग से गढ़ने का है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। ---------------------
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर