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शिमला, 18 अगस्त (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में सरकार ने खुलासा किया है कि प्रदेश में कुल 138 गांव ऐसे हैं जिनके नाम जाति के आधार पर रखे गए हैं और फिलहाल इन नामों को बदलने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। कसौली के विधायक विनोद सुल्तानपुरी द्वारा पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में सरकार ने सदन को बताया कि केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय 28 दिसंबर 1960 को जारी अपने दिशा-निर्देशों में यह साफ कर चुका है कि सामान्य परिस्थितियों में गांव, कस्बे, शहर या सड़कों के नाम बदलना उचित नहीं है। गृह मंत्रालय के अनुसार, जिन नामों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, उन्हें बदलने से बचना चाहिए और केवल स्थानीय भावना या भाषाई कारणों से बदलाव स्वीकार नहीं होगा। उदाहरणस्वरूप किसी गांव का नाम महज राष्ट्रीय नेताओं के सम्मान में या भाषाई कारणों से बदलना तर्कसंगत नहीं माना जाएगा। साथ ही नया नाम रखते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि राज्य या नजदीकी क्षेत्रों में पहले से वैसा नाम मौजूद न हो जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो। नाम बदलने के किसी भी प्रस्ताव के साथ राज्य सरकार को पुराने नाम का कारण और नए नाम का औचित्य गृह मंत्रालय को भेजना अनिवार्य होता है और अंतिम स्वीकृति केंद्र सरकार ही प्रदान करती है। वर्तमान में प्रदेश में किसी भी गांव या कस्बे का नाम बदलने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास लंबित नहीं है।
प्रदेश में 5.93 लाख बेरोजगार, बेरोजगारी दर बढ़ी
इसी बीच प्रदेश में बेरोजगारी सम्बंधी विधायक जनक राज के सवाल के जवाब में उद्योग मंत्री ने बताया कि कि रोजगार कार्यालयों में कुल 5,93,457 आवेदक पंजीकृत हैं, हालांकि यह जरूरी नहीं कि सभी पंजीकृत युवा बेरोजगार ही हों। उन्होंने कहा कि आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग के अनुसार प्रदेश में बेरोजगारी दर वर्ष 2021-22 में 4.0 प्रतिशत, 2022-23 में 4.4 प्रतिशत और 2023-24 में बढ़कर 5.4 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा