उत्तर प्रदेश विधानसभा में श्री बांके बिहारीजी मंदिर न्यास अध्यादेश 2025 पारित
- मंदिर की प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं को बनाए रखने का प्रावधान - 18 सदस्यीय न्यासी बोर्ड करेगा मंदिर का संचालन लखनऊ, 13 अगस्त (हि. स.)। उत्तर प्रदेश विधानसभा में बुधवार काे मथुरा में स्थित विश्वप्रसिद्ध श्री बांके बिहारीजी मंदिर के संचालन, संरक्ष
विधान सभा


- मंदिर की प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं को बनाए रखने का प्रावधान

- 18 सदस्यीय न्यासी बोर्ड करेगा मंदिर का संचालन

लखनऊ, 13 अगस्त (हि. स.)। उत्तर प्रदेश विधानसभा में बुधवार काे मथुरा में स्थित विश्वप्रसिद्ध श्री बांके बिहारीजी मंदिर के संचालन, संरक्षण और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए ‘श्री बांके बिहारीजी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025’ ध्वनि मत से पारित हो गया। यह अध्यादेश परंपरागत पूजा-पद्धति और धार्मिक मान्यताओं को बिना छुए, प्रबंधन, सुरक्षा और सेवा-सुविधाओं को आधुनिक स्वरूप देने का मार्ग प्रशस्त करेगा। इस अध्यादेश के लागू होने से श्री बांके बिहारी जी मंदिर न केवल अपनी प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं को बनाए रखेगा, बल्कि श्रद्धालुओं को सुरक्षित, सुगम और आधुनिक अनुभव भी देगा।

जानकारी के अनुसार न्यास का संचालन 18 सदस्यीय न्यासी बोर्ड करेगा। इसमें 11 नामनिर्दिष्ट सदस्य होंगे, जिनमें 3 वैष्णव परंपरा से, 3 अन्य सनातन परंपराओं से, 3 विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्ति, 2 गोस्वामी परंपरा से (राज-भोग व शयन-भोग सेवायत) होंगे। इसके अतिरिक्त 7 पदेन सदस्य होंगे, जिनमें जिलाधिकारी मथुरा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त, ब्रज तीर्थ विकास परिषद के सीईओ, धर्मार्थ कार्य विभाग का एक अधिकारी, श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट के सीईओ और राज्य सरकार से नामित एक सदस्य सम्मिलित होंगे। नामनिर्दिष्ट न्यासियों का कार्यकाल तीन वर्ष होगा। इनकी पुनर्नियुक्ति अधिकतम दो बार हो सकेगी। सभी न्यासी हिंदू और सनातन धर्म मानने वाले होंगे। अध्यादेश में स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई पदेन सदस्य सनातन धर्म को नहीं मानने वाला यानी गैर-हिंदू हुआ, तो उसकी जगह उससे कनिष्ठ अधिकारी को नामित किया जाएगा।

धार्मिक व सांस्कृतिक परंपराओं में सरकार का नहीं होगा दखल

अध्यादेश में स्पष्ट किया गया है कि मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क), 19(1)(6), 25 और 26 के अनुरूप सभी धार्मिक पहलुओं का सम्मान किया जाएगा। राज्य सरकार का उद्देश्य केवल वित्तीय पारदर्शिता और संसाधनों का जवाबदेह उपयोग सुनिश्चित करना है, न कि मंदिर की आस्तियों पर किसी तरह का अधिकार जताना।

बैठक, दायित्व और वित्तीय अधिकार

अध्यादेश में प्रावधान किया गया है कि न्यास की बैठक हर तीन महीने में अनिवार्य होगी। बैठक से 15 दिन पहले नोटिस देना होगा। बोर्ड/सदस्य सद्भावना-पूर्वक किए गए कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराए जाएंगे। इसके अलावा न्यास को 20 लाख रुपये तक की चल/अचल संपत्ति स्वयं खरीदने का अधिकार होगा। इससे अधिक के लिए सरकार की स्वीकृति आवश्यक होगी। मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) एडीएम स्तर के अधिकारी होंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / दिलीप शुक्ला