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चम्बल घाटी के बागी — देशभक्ति की पुकार पर गुरिल्ला युद्ध में कूदे डाकू, अंग्रेजी पुलिस के छक्के छुड़ाए
काकोरी कांड के नायक मुकुंदीलाल — जिन्होंने जिले के युवाओं में आजादी की ज्वाला भड़काई
औरैया, 12 अगस्त (हि. स.)। 12 अगस्त 1942 का दिन उत्तर प्रदेश के औरैया के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है, जब अंग्रेजी हुकूमत पर कहर बनकर स्थानीय छात्र टूट पड़े। इस आंदोलन में औरैया के छह छात्रों ने अपना बलिदान देकर यूनियन जैक को उतार तिरंगा फहरा दिया। जेल में कैद भारतीय नेताओं के कानों तक जब छात्रों की हुंकार पहुँची, तो उनके मुंह से स्वतः इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूँज उठे। यह घटना उत्तर भारत की सबसे बड़ी छात्र क्रांति मानी जाती है। उस दिन किताबों की जगह छात्रों के हाथों में तिरंगा था और लक्ष्य था अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतीक झंडा उतारकर आजादी का प्रतीक तिरंगा लहराना।
अंग्रेजी पुलिस की गोलियों से 6 छात्र शहीद हो गए, जबकि दर्जनों घायल जमीन पर पड़े हुए भी भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। गुलामी के दिनों में ए.बी. हाई स्कूल के नाम से मशहूर तिलक इंटर कॉलेज का भवन आज भी उस क्रांति का गवाह है। वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र राठौर के अनुसार, यह औरैया का दूसरा सबसे बड़ा आंदोलन था, जो अगस्त क्रांति यानी भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा था।
चम्बल के डाकुओं ने भी लड़ी थी आजादी की जंग
आजादी की लड़ाई में केवल नेता और छात्र ही नहीं, बल्कि चम्बल घाटी के कुख्यात माने जाने वाले डाकू भी शामिल हुए। गांधी जी के नारों और देशभक्ति की पुकार ने इन डाकुओं के मन में भी आजादी का जज्बा जगा दिया। यमुना और चम्बल नदी के किनारे छिपे ये बागी अंग्रेजी पुलिस के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ने लगे।
शहर में छात्र पुलिस से सीधी भिड़ंत कर रहे थे, वहीं जंगलों में छिपे डाकू अंग्रेजी पुलिस को शहर की सीमा में घुसने से रोक रहे थे। इनमें ब्रह्मचारी डकैत का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया। यह पहलू देश के बाकी हिस्सों में शायद ही लोग जानते हों कि चम्बल के इन डाकुओं ने अंग्रेजी शासन को कमजोर करने में मदद की थी।
काकोरी कांड से भरी युवाओं में क्रांति की चिंगारी
औरैया के भारतवीर मुकुंदीलाल का नाम भी इस क्रांति से गहराई से जुड़ा है। 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड में सरकारी खजाना लूटकर उन्होंने अंग्रेजी हुक्मरानों को भारतीय क्रांतिकारियों की ताकत का एहसास करा दिया था। इस घटना ने जिले के युवाओं में आजादी की लहर को और तेज कर दिया।
फ़रवरी 1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन की हुंकार के बाद फ़रवरी से जुलाई तक पांच महीनों में आंदोलन को धार देने की रणनीति बनी। अंग्रेजी हुक्मरानों ने इस योजना को कुचलने के लिए बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया, लेकिन इससे देश के युवाओं के जोश में और इज़ाफ़ा हुआ। आखिर 12 अगस्त 1942 को औरैया के छात्रों ने यह साबित कर दिया कि आजादी के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
अगस्त के महीने की 8, 9 और 12 तारीखें इतिहास में आज भी उस दौर के क्रांतिकारियों के साहस, इच्छाशक्ति और बलिदान की चमक को याद दिलाती हैं। औरैया के छात्रों और चम्बल के डाकुओं की यह साझी जंग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अनोखी और प्रेरणादायक गाथा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील कुमार