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कोलकाता, 11 अगस्त (हि.स.)। पश्चिम बंगाल सरकार ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि वह फिलहाल चुनाव आयोग (ईसीआई) के उस आदेश का पालन नहीं करेगी, जिसमें राज्य के दो विधानसभा क्षेत्रों में तैनात चार चुनाव अधिकारियों को निलंबित करने के निर्देश दिए गए थे। इन अधिकारियों पर मतदाता सूची में गलत तरीके से नाम जोड़ने का आरोप है।
चुनाव आयोग ने आठ अगस्त को राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत को पत्र भेजकर निलंबन आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट सोमवार तक भेजने को कहा था, लेकिन मुख्य सचिव ने आयोग को सूचित किया कि राज्य सरकार ने अभी तक किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश नहीं दिया है।
मुख्य सचिव ने सोमवार को अपने पत्र में लिखा कि मामले की आंतरिक जांच और प्रक्रियाओं की व्यापक समीक्षा शुरू कर दी गई है। उन्होंने कहा कि जिला और फील्ड स्तर के अधिकारियों पर कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं, जिनमें समयबद्ध चुनाव कार्य भी शामिल हैं। कई बार वे कुछ कार्य अधीनस्थ कर्मचारियों को अच्छे विश्वास में सौंप देते हैं।
पंत ने यह भी कहा कि जिन अधिकारियों ने हमेशा ईमानदारी और दक्षता दिखाई है, उनके खिलाफ बिना विस्तृत जांच के कार्रवाई करना अनुचित और कठोर कदम होगा। इससे न केवल संबंधित अधिकारियों का मनोबल गिरेगा बल्कि चुनावी और प्रशासनिक कार्यों में लगे पूरे दल पर नकारात्मक असर पड़ेगा। फिलहाल इन चार अधिकारियों को चुनावी कार्यों और मतदाता सूची पुनरीक्षण से हटा दिया गया है और जांच पूरी होने के बाद ही आगे की रिपोर्ट भेजी जाएगी।
यह विवाद शुरू से ही गरमा गया था, जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि राज्य सरकार अपने कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगी।
राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल के कार्यालय ने पहले दो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ), दो सहायक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (एईआरओ) और एक डाटा एंट्री ऑपरेटर के खिलाफ जांच की थी। शिकायतों में आरोप था कि इन अधिकारियों ने मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया में लापरवाही बरती और चुनावी डाटा सुरक्षा नीति का उल्लंघन करते हुए अपने लॉगिन पासवर्ड अनधिकृत व्यक्तियों के साथ साझा किए।
जांच में दोषी पाए जाने पर संबंधित अधिकारियों को कम से कम तीन महीने से लेकर अधिकतम दो साल की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।--------------
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर