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नई दिल्ली, 11 अगस्त (हि.स.)। सामाजिक समरसता का संदेश लिए रविन्द्रनाथ टैगोर के नाटक चांडालिका की अद्भुत प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया। कथक सहित कई नृत्य विधाओं के संगम के साथ चांडालिका नाट्य की संगीतमय प्रस्तुति ने न केवल दिल्ली वासियों को मंत्रमुग्ध किया बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं पर सोचने को भी विवश किया। मौका था डॉ आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के सहयोग से आयोजित चांडालिका नृत्य नाटिका के मंचन का, जिसे कथक धरोहर नाम की संस्था ने तैयार किया था।
सोमवार को डॉ आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में कथक धरोहर द्वारा आयोजित नृत्य नाटिका का निर्देशन सदानंद विश्वास ने किया। वे कथक धरोहर के फाउंडर भी हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ द्वीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस मौके पर डॉ आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के निदेशक आकाश पाटिल, कथक धरोहर के अध्यक्ष प्रवीण शर्मा सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।
इस मौके पर मीडिया से बात करते हुए कथक धरोहर के अध्यक्ष प्रवीण शर्मा ने बताया कि यह संस्था की 14वीं वर्षगांठ है। इस मौके पर रवींद्रनाथ टैगोर को याद करने के लिए उनके नाट्य चांडालिका से बेहतर क्या हो सकता है। ये देश के गौरवशाली साहित्य और उसके इतिहास को उजागर करता है। यह नृत्यनाटिका कथक के साथ कई अन्य नृत्य परंपरा का अनूठा संगम है।
चांडालिका रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कहानी है, जो एक निम्न जाति की लड़की प्रकृति और एक बौद्ध भिक्षु आनंद के बीच प्रेम और सामाजिक असमानता के विषयों पर केंद्रित है। कहानी में, प्रकृति, जो एक चांडाल (अछूत) जाति की है, एक कुएं से पानी भरते समय आनंद से मिलती है। आनंद, जो एक भिक्षु है, उससे पानी मांगता है, जिससे प्रकृति हैरान हो जाती है क्योंकि उच्च जाति के लोग अछूतों से पानी नहीं लेते। आनंद का यह व्यवहार प्रकृति को झंकझोर देता है और वह उसके प्रेम में पड़ जाती है। वह अपनी मां से मंत्र पढ़कर आनंद को अपने घर बुलाने के लिए बाध्य करती है, जिससे कहानी में सामाजिक और व्यक्तिगत संघर्ष पैदा होता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी