उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा केवल बादल फटने की नहीं : प्रो भरत राज सिंह
-जलवायु परिवर्तन तेजी से पिघलते ग्लेशियर और भूगर्भीय अस्थिरता का परिणाम है। लखनऊ, 10 अगस्त (हि.स.)। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद के धराली क्षेत्र में हाल ही में आई आपदा ने हिमालयी क्षेत्र की बढ़ती संवेदनशीलता और जोखिम को एक बार फिर देश के सामने रखा ह
प्राकृतिक आपदा की फाइल फोटो


-जलवायु परिवर्तन तेजी से पिघलते ग्लेशियर और भूगर्भीय अस्थिरता का परिणाम है।

लखनऊ, 10 अगस्त (हि.स.)। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद के धराली क्षेत्र में हाल ही में आई आपदा ने हिमालयी क्षेत्र की बढ़ती संवेदनशीलता और जोखिम को एक बार फिर देश के सामने रखा है। मीडिया में इस घटना को बादल फटना बताया गया, लेकिन यह केवल बादल फटने की घटना नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन, तेजी से पिघलते ग्लेशियर और भूगर्भीय अस्थिरता का परिणाम है। यह बातें रविवार को लखनऊ स्थित स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज के महा निदेशक प्रो. भरत राज सिंह ने कही।

हिमालय विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर स्रोत है, जहां पिछले दशकों में ग्लेशियरों के पिघलने की दर 60 से 70 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इससे हिमालय की पारिस्थितिकी और मानवीय बस्तियों को गंभीर खतरा है। तेजी से बढ़ता शहरीकरण, खनन, बड़े निर्माण कार्य और पर्यावरणीय दबाव इस क्षेत्र की नाजुक भौगोलिक संरचना को कमजोर कर रहे हैं, जिससे भूस्खलन, भूमि धंसाव और बाढ़ जैसी आपदाओं में वृद्धि हो रही है।

प्रो. भरत राज सिंह ने इस समस्या के समाधान के लिए फुटहिल रेसिडेंशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर मॉडल प्रस्तावित किया है। इसका उद्देश्य है हिमालयी तलहटी के सुरक्षित क्षेत्रों जैसे देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल आदि में पूर्व-निर्धारित आवासीय क्लस्टर बनाकर संवेदनशील गांवों के लोगों को आपदा के समय सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करना। इस योजना में न केवल सुरक्षित आवास होंगे, बल्कि स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, बाजार, सार्वजनिक परिवहन जैसी आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी। यह मॉडल स्थानीय सांस्कृतिक और सामाजिक संरचनाओं को बनाए रखने पर विशेष ध्यान देता है।

इस योजना के अंतर्गत संवेदनशील इलाकों का जोखिम मानचित्रण, मॉड्यूलर और भूकम्प-रोधी निर्माण, पूर्व-आवंटन प्रणाली, नियमित आपदा पूर्वाभ्यास और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए कृषि एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन शामिल है।

तेज और व्यवस्थित पुनर्वास: पूर्व-निर्धारित क्लस्टर की वजह से आपदा के तुरंत बाद सुरक्षित स्थानांतरण संभव होगा। जनहानि में कमी: समय पर सुरक्षित स्थानांतरण से जान-माल की हानि कम होगी। सामाजिक एकजुटता: समुदाय एक साथ पुनर्वासित होकर सामाजिक ताने-बाने को बनाए रख सकेगा। आजीविका की सुरक्षा: स्थानीय व्यवसायों और कृषि को समर्थन मिलेगा। लागत प्रभावशीलता: यह पुनर्वास महंगे आपातकालीन उपायों से अधिक किफायती और टिकाऊ होगा।

यह योजना भारत की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) और संयुक्त राष्ट्र के सेन्दाई फ्रेमवर्क (2015–2030) के बिल्ड बैक बेटर सिद्धांत के अनुरूप है। राज्य सरकारें, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), यूएनडीपी और विश्व बैंक के सहयोग से इसे प्रभावी रूप से लागू किया जा सकता है।

उपरोक्त से यह स्पष्ट होता है कि धराली, जोशीमठ और केदारनाथ जैसी घटनाओं ने हिमालयी क्षेत्र की नाजुकता और आपदा प्रबंधन की अत्यंत आवश्यकताहै। पारम्परिक राहत कार्यों से आगे बढ़कर पूर्व-नियोजित, सुव्यवस्थित और टिकाऊ पुनर्वास की आवश्यकता है। फुटहिल रेसिडेंशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर मॉडल इस दिशा में एक व्यावहारिक और प्रभावी कदम है, जो हिमालयी निवासियों को सुरक्षित आवास, आजीविका और सामाजिक स्थिरता प्रदान करेगा।सरकारों और समाज के सभी स्तरों को मिलकर इस मॉडल को अपनाकर हिमालयी क्षेत्रों में आपदा जोखिम को कम करने और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार / रोहित कश्यप