श्रावण पूर्णिमा को महामाया मंदिर ऐतिहासिक नगरी पांगणा में गुग्गा प्राण प्रतिष्ठा
मंडी, 10 अगस्त (हि.स.)। सतलुज घाटी के अंतर्गत पांगणा सुकेत क्षेत्र में सिद्ध नाथ परंररा के अंतर्गत गुग्गा छत्री की पूजा-अर्चना और गाथा गायन का सदियों से प्रचलन रहा है। सुकेत में 11 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में सिद्ध नाथ परम्परा का प्रचार प्रसार हुआ
पांगणा बेहड़े से प्रस्थान करने से पूर्व गुग्गा व गुगड़ी।


मंडी, 10 अगस्त (हि.स.)। सतलुज घाटी के अंतर्गत पांगणा सुकेत क्षेत्र में सिद्ध नाथ परंररा के अंतर्गत गुग्गा छत्री की पूजा-अर्चना और गाथा गायन का सदियों से प्रचलन रहा है। सुकेत में 11 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में सिद्ध नाथ परम्परा का प्रचार प्रसार हुआ। गुग्गा जाहर पीर ने अन्य सिद्धों की तरह हिमाचल प्रदेश में अपनी चमत्कारिक शक्तियों से अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की और यहां के जनमानस में वे पुज्यपद को प्राप्त हुए। ऐतिहासिक नगरी पांगणा में श्रावण पूर्णिमा के दिन गुग्गा जाहर पीर के धात्विक विग्रह को श्रृंगारित कर विधिवत् लोकदर्शनार्थ गुग्गा-गुग्गी को डमरू, ढोलक, शहनाई एवम् घनवाद्य की सुमधुर ताल पर घर-घर ले जाया जाता है।

सुकेत की आदि राजधानी पांगणा में गुग्गा जाहर पीर गुग्गा सिंहासनी के नाम से प्रसिद्ध हैं जो महामाया मंदिर के गर्भगृह में देवी मां के साथ प्रतिष्ठित रहते हैं। श्रावण पूर्णिमा को पांगणा के महामाया मंदिर से गुग्गा सिंहासनी व गुगड़ी के धात्विक विग्रहों का नव निर्माण कर चार दिवसीय प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम मे लगभग 18 देवी-देवताओं की खुम्बलियो देव प्रतीक चिन्ह के साथ समितियों ने भाग लेकर अपना आशीर्वाद प्रदान किया। रात भर भक्तिगीतो के साथ नृत्य की उत्कृष्ट प्रस्तुतिया जागरण का आकर्षण रही। प्रतिष्ठा आयोजन के बाद गुग्गा मंडली बाग द्वारा रविवार को विशाल भंडारे के धूमधाम से आयोजन के बाद लोकदर्शनार्थ और घर-घर आशीर्वाद प्रदान करने के लिए गुग्गा जी की नव रथ यात्रा निकाली गई।

गुग्गा मंडली के प्रधान डोलाराम शास्त्री, उप प्रधान गोपाल का कहना है कि भाद्रपद मास में देवी-देवताओं के आसुरी शक्तियों से युद्ध के कारण देवता व देवगण मंदिरों से दूर रहते हैं। अत: देव क्षेत्र को द्वेषी शक्तियों से बचाने के लिए गुग्गा सिंहासनी, गुरु गोरखनाथ अपने अधीनस्थ गणों मशाणू, हनुमान व खड़पोटलिया सिद्ध आदि के माध्यम से रात्रि में भूत-प्रेतादि शक्तियों का शमन करते हैं। वहीं गुग्गा मंडली के सचिव टीजीटी अध्यापक देवी सिंह, प्रमुख संचालक किशोरी लाल शास्त्री, सलाहकार सोम कृष्ण, परस राम का कहना है कि सुकेत में भाद्रपद मास में देव समुदाय के मंदिर से चले जाने पर सभी देवकार्य महीने भर के लिए स्थगित रहते हैं। क्षेत्र से भूत-प्रेतादि व द्वेषी शक्तियों को भगाने के लिये हर रोज रात्री को देव ताल बेड़ का पुजारी पंकज, गूर भूपेंद्र के साथ मुख्य ढोली गंगेश, दिनेश के वादन से संगीत की दिव्य अभिव्यक्ति के साथ होगा। ऐसा विश्वास है कि देवताल के वादन से आसुरी शक्तियां क्षेत्रवासियों को संत्रास नहीं दे पाती हैं। सुकेत की राजधानी पांगणा में गुग्गा सिंहासनी के विग्रह को कांधे पर उठाए घर-घर जाकर गुग्गा गाथा के गायन के साथ नाथ समुदाय के लोग महीने भर इस कठिन लेकिन लौकिक और पारलौकिक सुख प्रदान करने वाली गुग्गा पद यात्रा परंपरा का निर्वहन करेंगे।

सुकेत की आदि राजधानी पांगणा में महामाया राज-राजेश्वरी के साथ-विराजित गुग्गा जाहरपीर यात्रा के दौरान लोग अपनी मन्नत पूर्ण होने पर गुग्गा छत्री को रात्रि पर्यंत घरों में आतिथ्य भी प्रदान करते है। गुग्गा सिंहासनी की जन्म से जुड़ीं गाथाएं लोकगाथा गायक लक्ष्मण, विक्की, चमन लाल, परस राम व साथियों द्वारा कई प्रकारांतर के साथ दिन-रात हर गांव हर घर के आंगन में गायी जाती हैं। सुकेत की राजधानी पांगणा में महीने भर भाद्रपद मास में गुग्गा गाथा का यह गायन नाथ संप्रदाय द्वारा होता है। साथ ही साथ गुग्गा सिंहासनी की भाद्रपद मास में सक्रिय आसुरी शक्तियों के निराकरण में अहम् भूमिका रहती है। हिमाचल प्रदेश में सिद्ध नाथ परंपरा यहां के धार्मिक एवम् सांस्कृतिक जीवन की परंपराओं को जीवंतता प्रदान करने में गुगा जाहरवीर कमेटी बाग की रक्षा व सुख-सौख्य का आशीष प्रदान करने मे बेमिसाल स्तुत्य भूमिका व महती योगदान रहा है। जिसकी पांगणा-सुुकेत क्षेत्र के लोग भूरी-भूरी प्रशंसा करते हैं।

गुग्गा मंडली में संतराम, नरसिंह दत्त, मोहन लाल, घनश्याम, कमलदेव आदि वरिष्ठ सदस्य हैं जो गुग्गा जी की महीने भर तक चलने वाली इस रथ यात्रा व गुग्गा गाथा गायन की समृद्घ सांस्कृतिक विरासत को नवोदित युवाओं, बाल कलाकारों के साथ आगे बढ़ाने और संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा