कजलियां पर्व: धूमधाम से मनाया गया कजलियों का त्योहार, बड़े-बुजुर्गों ने दिया छोटों को आशीर्वाद
अनूपपुर, 10 अगस्त (हि.स.)। मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में आपसी प्रेम और भाईचारे का प्रतीक कजलियां पर्व रविवार को पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। इस दौरान जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए गए। शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक कजलियों का त्योहार पारंपरागत रूप स
कजलिया


कजलियों काे बच्चे लेकर जाते


अनूपपुर, 10 अगस्त (हि.स.)। मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में आपसी प्रेम और भाईचारे का प्रतीक कजलियां पर्व रविवार को पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। इस दौरान जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए गए। शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक कजलियों का त्योहार पारंपरागत रूप से मनाया गया। जहां महिलाएं, पुरुष, बच्चे आदि ने अपनी सहभागिता निभाई। नदी, तालाब और सरोबर में टोकरी और मिटटी को विसर्जित कर कजलियां लेकर लौटी महिलाओं व कन्याओं ने सबसे पहले घर के सदस्यों को कजलियां दी। जहां बड़े-बुजुर्गों ने छोटों को आशीर्वाद दिया तो वहीं छोटों ने बड़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद लिया।

उल्लेखनीय है कि कजलईया पर्व भाद्रपद महीने की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसे भुजरिया पर्व भी कहते हैं। यह पर्व, रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को गेहूं की भुजरिया देकर सुख-समृद्धि की शुभकामनाएं देते हैं। मान्यता है कि गेहूं, जौ, और बांस के बर्तनों में खेत की मिट्टी डालकर कजलियों का बीच नागपंचमी के दूसरे दिन ज्यादातर घरों में डाला जाता है,घर की कन्याएं और महिलाएं रक्षाबंधन तक जल देते हुए कजलियों का पौधा तैयार करती हैं। कजलियां मनाने का यहां की पुरानी परंपरा है जो आज भी जीवंत है। रीवा राजतंत्र के जमाने से शुरू किया गया यह पर्व आज भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता हैं। जहां सभी जाति-धर्म के लोग एक-दूसरे को कजलियां देकर शुभकामनाएं दी तथा आपसी भाईचारे को बढ़ावा दिया।

रक्षाबंधन के दूसरे दिन परीवा को धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व एक-दूसरे से मिलने-मिलाने वाला त्योहार है। इस दिन लोग अपने से बड़ों को कजलियां देकर पैर छूते हुए आशीर्वाद मांगते है। हालांकि अब ये त्योहार कुछ घरों तक ही सीमित रह गया है। मान्यता है कि गेहूं, जौ और बांस के बर्तनों में खेत की मिट्टी डालकर कजलियों का बीच नागपंचमी के दूसरे दिन ज्यादातर घरों में डाला जाता है। जबकि घर की कन्याएं व महिलाएं रक्षाबंधन तक जल देते हुए कजलियों का पौधा तैयार करती है।

अनूपपर नगर के विभिन्न‍ नदियों सराबरों में कजलियां विसर्जित कर एक-दूसरे को कजलियां देकर पर्व की बधाईयां दी। कोतमा नगर के पंचायती मंदिर एवं पुरानी बस्ती से शाम कजलईया का जुलूस निकाला गाया, जो भजन कीर्तन करते हुए बस स्टैंड पुरनिहा तालाब एवं मनेन्द्रगढ़ रोड स्थित केरहा तालाब में कजलईयों के विसर्जन के साथ समाप्त हुआ। शाम से छोटे-छोटे बच्चे एवं बडे बुजुर्ग कजलईया लेकर एक दूसरे के घरों में पहुंचकर गले मिलेगें। कजलईया पर्व हिन्दू त्यौहारो में मुख्य पर्व माना जाता है जिसमें लोग एक दूसरे से गले मिलकर अपनी खुशियां बांटते हैं।

किसान पौधों को देखकर लगाता है फसल अनुमान

रक्षाबंधन के दूसरे दिन घर की कन्याएं दोपहर के समय तैयारी कर शाम को महिलाओं के समूह के साथ सिर में बांस की टोकरी रखकर नदी, तालाब, सरोबर में जाती है। जहां कजलियों की तना को जड़ से अलग कर टोकरी को पानी में विसर्जित कर देती है। जबकि तना को कजलियों का पर्व कहते है। जिसको बच्चे व बच्चियां सहित युवा एक-दूसरे को देते हुए आशीर्वाद मांगते है। जबकि किसान परिवार इन पौधों को देखकर अनुमान लगाता है कि इस वर्ष फसल कैसी होगी। वहीं बड़े बुजुर्ग सामने वाले से मिलने वाली कजलियों को तोड़कर बच्चों के कानों पर लगाते है। दोपहर से शुरू होने वाला कजलियों का त्योहार देर रात तक चलता रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश शुक्ला