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वाराणसी,01 अगस्त (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, कला संकाय के टूरिज्म मैनेजमेंट के विद्यार्थियों ने तीन दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण में बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की जीवंतता देखी और भारत की गौरवशाली विरासत से रूबरू हुए। शैक्षणिक भ्रमण में शामिल शिक्षकों पर्यटन प्रबंधन के शिक्षक डॉ. अनिल कुमार सिंह एवं डॉ. प्रवीन राना ने शुक्रवार काे यहां शैक्षणिक भ्रमण की जानकारी दी और बताया कि इस शैक्षिक भ्रमण ने छात्रों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाया है । और उन्हें भारतीय इतिहास को अनुभवात्मक रूप से जानने का अवसर प्रदान किया है।
शिक्षकों के अनुसार यात्रा के दौरान छात्रों ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष का अवलोकन किया, जहाँ उन्होंने नालंदा के संरक्षण की प्रक्रिया को “पहले और अब” की दृष्टि से समझा। उन्होंने जाना कि किस प्रकार एक समय में ज्ञान का वैश्विक केंद्र रहे नालंदा को इतिहास की मार झेलनी पड़ी और आज किस प्रकार सरकार और पुरातत्व विभाग इसके पुनर्जीवन के प्रयासों में जुटे हैं। दोनों शिक्षकों के नेतृत्व में छात्रों ने बिहार के नालंदा, राजगीर, बोधगया में शैक्षणिक भ्रमण किया।
छात्रों को नव नालंदा महाविहार विश्वाविद्यालय घूमने और वहाँ के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह को भी सुनने का मौका मिला। नालंदा अवशेष से उस समय के नालंदा विश्वाविद्यालय विद्यार्थियों ने समझा। छात्र वहां ह्वेन त्सांग स्मृति भवन भी गए वहां से उनकी भारत चीन यात्रा वृतांत को समझने का प्रयास किया। विद्यार्थियों ने राजगीर के ब्रह्मकुण्ड (हिंदू तीर्थ स्थान) तथा गृद्धकूट पर्वत (बौद्ध तीर्थ स्थान ) पर जाकर स्थलों का अध्ययन किया। बोधगया में स्थित विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर में छात्रों ने ध्यान किया, बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग को मंदिर प्रबंध समिति के वेन मनोज भंते को सुने। ज्ञान प्राप्ति के बाद बिताए गए 7 स्थलों को भी देखा ।
बोधगया के शांत वातावरण में उन्होंने बुद्ध के जीवन के विभिन्न पक्षों की कल्पना और गहराई से अनुभूति की। इसके अतिरिक्त छात्रों ने बिहार की अन्य सांस्कृतिक धरोहरों का भी अध्ययन किया। प्राचीन मूर्तिकला, स्थापत्य कला, ग्रंथालयों, तथा ऐतिहासिक संग्रहालयों के माध्यम से उन्हें यह समझने का अवसर मिला कि बिहार भारतीय सभ्यता की जड़ें कितनी गहरी हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी