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उज्जैन, 1 अगस्त (हि.स.)। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा श्रावण-भाद्रपद माह के प्रत्येक शनिवार शास्त्रीय वादन व नृत्य की प्रस्तुतियॉ होती है। इस शनिवार को चतुर्थ संध्या मे देश के प्ख्यात कलाकार प्रस्तुति देंगे।
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक प्रथम कौशिक ने बताया कि 12 जुलाई से प्रारभ हुए 20 वे अखिल भारतीय श्रावण महोत्सव का आयोजन श्री महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित त्रिवेणी कला एवं पुरातत्व संग्रहालय सभागृह, जयसिंह पुरा उज्जैन में शाम 7 बजे किया जा रहा है | कला साधकों के इस समागम में 02 अगस्त, शनिवार को खैरागढ़ के विवेक नवरे का शास्त्रीय सरोद वादन, गोवहाटी के उषा रानी व डॉ. जादाब बोराह के सत्रिया नृत्य व उज्जैन की उर्वशी कुशवाह के कथक नृत्य की प्रस्तुातियॉ सम्मिलित हैं।
कलाकारों का परिचय
* श्री विवेक नवरे का जन्म 1973 में एक संगीतकार परिवार में हुआ। आपने सात वर्ष की आयु से संगीत की शिक्षा प्रारंभकी और सरोद वादन की प्रारंभिक शिक्षा पं. शंकर भट्टाचार्य से प्राप्त की। बाद में आपने पं. ब्रिज नारायण जी से 25 वर्षों तक गुरु-शिष्य परंपरा में गहन प्रशिक्षण लिया और पद्मविभूषण पं. राम नारायण जी से भी शिक्षा प्राप्त की। आपके सरोद वादन में गायकी अंग और तंत्रकारी अंग का सुंदर समन्वय होता है, जिसमें कोमलता, मधुरता, कल्पना और आध्यात्मिकता की झलक मिलती है। आप आकाशवाणी (मुंबई) के 'A' ग्रेड कलाकार हैं और वर्तमान में इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में सहायक प्राध्यापक (सरोद) के रूप में कार्यरत हैं। आपने देश के अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर सराहनीय प्रस्तुतियाँ दी हैं।
* सत्रीया नृत्य :- सत्रीया नृत्य (असम का शास्त्रीय नृत्य है और आठ मुख्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपराओं में से एक है। वर्ष 2000 में इस नृत्य को भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में सम्मिलित होने क गौरव प्राप्त हुआ। इस नृत्य के संस्थापक महान संत श्रीमन्त शंकरदेव हैं। शंकरदेव ने सत्रीया नृत्य को 'अंकिया नाट' (शंकरदेव द्वारा तैयार किया असमिया एकांकी नाटकों का एक रूप) के लिए एक संगत के रूप में बनाया था। यह नृत्य सत्र नामक असम के मठों में प्रदर्शित किया गया था। यह परंपरा सत्रों के भीतर बढ़ी तथा विकसित हुई और यह नृत्य रूप सत्रीया नृत्य कहा जाने लगा | श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा प्रथम बार सत्रीया नृत्य की प्रस्तुति करवायी जा रही है |
* उषा रानी बैश्य एवं जादाब बोरा सत्रीया नृत्य की प्रख्यात नृत्यांगना और कोरियोग्राफर हैं, जिन्हें उस्ताद् बिस्मिल्ला खाँ युवा पुरस्कार (2016) प्राप्त है। आप 25 वर्षों से सत्रिया नृत्य के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं है और कीर्तन कला केंद्र की संस्थापक हैं। आपने राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर असम की सांस्कृतिक गरिमा को प्रस्तुत किया है।
वहीं, डॉ. जादब बोरा असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रमुख संवाहक हैं। डॉ. जादब बोरा एक प्रतिष्ठित साहित्यकार, लेखक हैं जिन्होंने असमिया साहित्य, संस्कृति और दर्शन पर गहन शोध किया है। आप अनेकों महत्वपूर्ण पुस्तकों और शोधपत्रों के लेखक हैं और असम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। आपने असमिया समाज की सांस्कृतिक जड़ों को नई दृष्टि दी है। दोनों विद्वानों का असम की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर सुदृढ़ करने करने में सराहनीय योगदान रहा है।
* सुश्री उर्वशी कुशवाह उज्जैन की प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना हैं। आपने पण्डित हरिहरेश्वर पोद्दार और श्री धीरेंद्र तिवारी से जयपुर घराने की शिक्षा प्राप्त की है। उर्वशी ने कथक में एम.ए की डिग्री राजा मानसिंह तोमर विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की है। आपने विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर प्रस्तुतियां दी हैं, जिनमें उमा सांझी महोत्सव, प्रतिभा खोज राज्योत्सव, भारत पर्व और विक्रमोत्सव शामिल हैं। उर्वशी ने ICCR द्वारा आयोजित ताल प्रयास प्रस्तुति में भी भाग लिया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / ललित ज्वेल