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कोलकाता, 01 अगस्त (हि.स.)। पश्चिम बंगाल में हिंदी भाषी लोगों के साथ और देश के विभिन्न हिस्सों में बंगाली प्रवासी श्रमिकों के कथित उत्पीड़न को लेकर जारी राजनीतिक घमासान के बीच नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने स्पष्ट कहा है कि भारत के हर नागरिक को संविधान के तहत देश में कहीं भी जाने और किसी भी भाषा में बोलने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि इस तरह की स्वतंत्रता पर कोई रोक लगाने की कोशिश की जाती है, तो उसका विरोध होना चाहिए।
शांतिनिकेतन स्थित अपने पैतृक निवास में पत्रकारों से बातचीत में सेन ने कहा कि कोई व्यक्ति बंगाली हो, पंजाबी हो या मारवाड़ी—यह मायने नहीं रखता। उसे जहां जाना है, वह जा सकता है, जिस भाषा में बोलना है, वह बोल सकता है। यह उसका संवैधानिक अधिकार है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत के संविधान में क्षेत्रीय अधिकार जैसा कोई प्रावधान नहीं है, और हर नागरिक को देशभर में समान रूप से रहने और प्रसन्न रहने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि हमें हर व्यक्ति का सम्मान करना होगा। हर नागरिक को प्रसन्न रहने का अधिकार है।
अमर्त्य सेन ने कहा कि अगर बंगालियों को कहीं प्रताड़ित या उपेक्षित किया जा रहा है, तो इसका स्पष्ट रूप से विरोध होना चाहिए। यह केवल बंगाल का नहीं, पूरे देश का सवाल है।
भाषा और सांस्कृतिक विरासत को लेकर सेन ने कहा कि ‘चर्यापद’ से शुरू हुई बांग्ला भाषा की ऐतिहासिक गरिमा को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि रवींद्रनाथ ठाकुर और काजी नजरुल इस्लाम की रचनाओं में जो मूल्य झलकते हैं, उन्हें समझना और स्वीकार करना जरूरी है।
गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस पिछले एक महीने से लगातार आरोप लगा रही है कि भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी खासकर गरीब मुस्लिम प्रवासी मजदूरों को परेशान किया जा रहा है और उन्हें अवैध बांग्लादेशी बताया जा रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर