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-साधु संतों का चातुर्मास आरम्भ, मांगलिक कार्यों पर विराम
हरिद्वार, 6 जुलाई (हि.स.)। रविवार से आगामी चार माह देवोत्थान एकादशी तक चराचर की सत्ता अब भगवान शिव के हाथों आ गयी है। देवशयनी एकादशी पर भगवान श्रीहरि की पाताल लोक निद्रा में जाने के कारण चराचर की सत्ता का हस्तातंरण हुआ है।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर ब्रह्मांड नियंता भगवान विष्णु समस्त देवों के साथ चार माह के लिए शयन पर चले गए। इसी कारण से इसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। राजा बलि को दिया वचन निभाने उनके पाताल लोक जाते ही इस सकल चराचर का दायित्व अब भगवान शंकर संभालेंगे। हरिशयन के साथ ही कार्तिक शुक्ल पक्ष देवोत्थान एकादशी तक संतों का चातुर्मास प्रारंभ हो गया है। इसी के साथ चार माह के लिए विवाहादि मांगलिक कार्यों पर पूर्ण विराम लग गया।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक दानवीर राजा बलि को दिया वचन निभाने के लिए आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर विष्णु शयन प्रारंभ हो जाता है। उनका जागरण अब पूरे चार माह बाद कार्तिक में देव प्रबोधनी एकादशी पर होगा। विष्णु चूंकि समस्त देवताओं की शक्ति हैं अतः उनके शयन पर जाते ही देव भी निस्तेज होकर सो जाते हैं। विष्णु और शिव पुराणों के अनुसार अब सारा ब्रह्माण्ड शंकर भगवान को चलाना पड़ेगा। गुरु पूर्णिमा की रात्रि में शिव कैलाश से एक माह के लिए कनखल आएंगे।
विष्णु पुराण के अनुसार आज भगवान लक्ष्मीनारायण योगनिद्रा में चले जाएंगे। ऐसा होने पर सूर्य, चंद्र और प्रकृति के तेजस में कमी आ जाएगी फलस्वरूप मांगलिक कार्य नहीं होंगे। हालांकि देवशयनी एकादशी की शुरुआत कल 05 जुलाई को शाम 06 बजकर 58 मिनट पर हो चुकी है। जबकि इसकी समाप्ति 06 जुलाई को शाम 09 बजकर 14 मिनट पर होगी।
श्री शुक्ल के मुताबिक प्राचीन काल में वर्षा ऋतु आने पर समस्त नदियां चढ़ जाती थी। नदी नाले भर जाते थे और साधु समाज निरन्तर यात्रा का धर्म निर्वहन नहीं कर पाता था। शास्त्रों के अनुसार प्राचीन जमाने में किसी साधु के लिए घर बनाना निषेध था। जगद्गुरुओं की आज्ञा थी संन्यास लेने वाले संन्यासी और दंडीस्वामी कहीं न ठहरें। एकांत अथवा पर्वतों पर जाकर तप करें और भिक्षाटन करते हुए जीवन बिताएं।
संन्यासी को एक स्थान पर ठहरने की आज्ञा केवल चातुर्मास में थी। इसी कारण संत एक स्थान पर चातुर्मास में रहते हैं। आज से साधु-संताें का चातुर्मास आरम्भ हो गया है। पूर्व में चार माह का ही चातुर्मास संत किया करते थे, किन्तु अब अधिकांश एक सप्ताह को एक मास मानकर एक महीने का ही चातुर्मास करने लगे हैं। कुछ एक पक्ष को एक माह मानकर दो माह तक चातुर्मास करते हैं। कुछ ऐसे भी संत हैं, जो चार माह तक चातुर्मास व्रत का परायण करते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला