उच्च न्यायालय ने पट्टा रद्द करने का आदेश किया निरस्त, पत्र के आधार पर निरस्त करने पर कोर्ट ने जताया आश्चर्य
इलाहाबाद हाईकाेर्ट


प्रयागराज, 31 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस बात पर ’आश्चर्य’ व्यक्त किया कि चार व्यक्तियों (याचिकाकर्ताओं) के पक्ष में दिया गया वैध पट्टा केवल राज्य के उपमुख्यमंत्री को सम्बोधित एक वकील के पत्र के आधार पर अधिकारी ने कैसे रद्द कर दिया गया। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने पट्टा रद्द करने के आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं, राकेश और तीन अन्य के पक्ष में पट्टा बहाल करने का निर्देश दिया है।

याचिका में कहा गया था कि भूमि प्रबंधन समिति ने इस आशय का प्रस्ताव पारित होने के बाद याचिकाकर्ताओं को वर्ष 2013 में पट्टा दिया था। हालांकि, 2018 में फर्रुखाबाद के एक वकील ने राज्य के उपमुख्यमंत्री को पत्र भेजे जाने के बाद संबंधित अधिकारी ने पट्टा रद्द करने की कार्यवाही शुरू की गई। कोर्ट को अवगत कराया गया कि उक्त पत्र के आधार पर उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 128 के तहत निरस्तीकरण की कार्यवाही शुरू की गई थी और बाद में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ निर्णय देकर पट्टा निरस्त कर दिया गया था। पट्टा निरस्तीकरण आदेश के विरुद्ध एक संशोधन प्रस्तुत किया गया, जिसे आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया और मामले को पुनर्विचार के लिए भेज दिया गया। हालांकि, पुनर्विचार के बाद पट्टा रद्द कर दिया गया, जिसके बाद एक संशोधन अर्जी दायर किया गया और उसे खारिज कर दिया गया।

पट्टा रद्द करने के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित वकील ने तर्क दिया कि आवेदन उपमुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। ऐसा आवेदन स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यह संहिता की धारा 128 के अनुसार प्रस्तुत नहीं किया गया था। उप्र राजस्व संहिता 2006 की धारा 128 कलेक्टर को किसी भी आवंटन के सम्बंध में निर्धारित तरीके से जांच करने के बाद आवंटन और पट्टे को रद्द करने का अधिकार देती है, यदि वह संतुष्ट है कि आवंटन संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन है।

यह देखते हुए कि संहिता की धारा 128 के तहत कोई उचित कार्यवाही शुरू नहीं की गई थी और केवल एक वकील द्वारा राज्य के उपमुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र के आधार पर कि पट्टे को रद्द करने की कार्यवाही शुरू कर दी गई थी और पट्टा निरस्त कर दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि राजस्व अधिकारियों ने अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उल्लंघन किया था। कोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, 7 जनवरी, 2025 और 20 अक्टूबर, 2024 के आदेशों को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ताओं के पक्ष में दी गई लीज (पट्टा) को तत्काल बहाल करने का निर्देश दिया।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे