सनातन परंपरा ही भारत का भविष्य: स्वामी रामदेव
प्रतियोगिता का शुभारम्भ करते हुए


रिद्वार, 31 जुलाई (हि.स.)। पतंजलि विश्वविद्यालय में तृतीय राष्ट्रीय स्वर्णशलाका प्रतियोगिता का भव्य शुभारंभ हुआ। दो दिवसीय इस शास्त्रार्थ प्रतियोगिता में देश भर से पधारे 141 प्रतिभागियों सहित प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वानों एवं शास्त्रज्ञों ने भाग लिया। इस आयोजन अनेक राज्यों से संस्कृत साहित्य में निपुण विद्वानों एवं विद्यार्थियों ने अपनी विद्वता का परिचय दिया।

प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय परंपरा के गहन विमर्शों को पुनर्जीवित करना था। मंच पर प्रतिभागियों ने अष्टाध्यायी, श्रीमद्भगवद्गीता, नवोपनिषद, चाणक्यनीति, हठयोग प्रदीपिका, अष्टावक्र गीता, अष्टांग हृदयम, बृहदारण्यक - छान्दोग्योपनिषद, योगदर्शन, ईश-केनोपनिषद जैसे महान शास्त्रों पर गहन वाक्यार्थ और शास्त्रार्थ प्रस्तुत किए। इन प्रस्तुतियों ने न केवल शास्त्रीय ज्ञान का प्रदर्शन किया, बल्कि वैदिक संवाद संस्कृति को भी सजीव कर दिया।

पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति स्वामी रामदेव ने कहा कि शास्त्र और सनातन परंपरा मनुष्य के नेतृत्व विकास और जीवन की दिशा निर्धारण में सहायक हैं। शास्त्र स्मरण से सद्गुणों की प्राप्ति होती है और इससे जीवन में आनंद की अनुभूति होती है। उन्होंने इस प्रतियोगिता को आध्यात्मिक पुनर्चिंतन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल बताया।

पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने प्रतियोगिता में उपस्थित सभी अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि शास्त्रश्रवण से पुण्य की प्राप्ति होती है और यह व्यक्ति के अंदर आत्मिक बल का संचार करता है। उन्होंने विद्यार्थियों से सनातन परंपरा के अनुकरण का आग्रह करते हुए इसे मानविक विकास और समाज की समृद्धि का पथ बताया।

इस विशेष अवसर पर संस्कृत विद्वानों की विशिष्ट उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा को और बढ़ाया। मंच पर उपस्थित प्रमुख शास्त्रज्ञों में प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री,आचार्य भवेंद्र, प्रो. ब्रजभूषण ओझा, प्रो. भोला झा, प्रो. मनोहर लाल आर्य, प्रो. विजयपाल प्रचेता, प्रो. बलवीर आचार्य, प्रो. मुरली कृष्णा, प्रो. शिवानी, प्रो. मधुकेश्वर भट्ट, डॉ. एनपी सिंह आदि शामिल रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला