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भारतीय अभिनेत्री त्रिधा चौधरी ने हिंदी, बंगाली और तेलुगू फिल्मों के साथ-साथ कई वेब सीरीज में भी अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रभाव छोड़ा है। साल 2011 में उन्होंने मॉडलिंग से अपने करियर की शुरुआत की थी और इसके बाद 'आश्रम' और 'बंदिश बैंडिट्स' जैसी वेब सीरीज में यादगार भूमिकाएं निभाईं। अब त्रिधा अपनी नई फिल्म 'सो लॉन्ग वैली' में एक पुलिस ऑफिसर के किरदार में नजर आ रही हैं। इस फिल्म को लेकर हाल ही में उन्होंने 'हिन्दुस्थान समाचार' को एक इंटरव्यू दिया, जिसमें उन्होंने न सिर्फ अपने इस नए किरदार पर बात की, बल्कि अपने करियर के सफर को लेकर भी खुलकर बातचीत की। पेश हैं इस खास बातचीत के कुछ प्रमुख अंश...
सवाल- फिल्म में अपने किरदार के बारे में बताएं?इस बार मैं 'सुमन नेगी' नाम की एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रही हूं, जो मनाली पुलिस स्टेशन में बतौर इंस्पेक्टर तैनात है। ट्रेलर में आपने देखे होंगे कि वह एक बेहद संवेदनशील और चुनौतीपूर्ण मिशन पर काम कर रही है। यह किरदार एक ऐसी महिला की कहानी बयां करता है जो न सिर्फ मजबूत इरादों वाली है, बल्कि अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह निष्ठावान और समर्पित भी है। मुझे पूरी उम्मीद है कि दर्शक इस किरदार के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव महसूस करेंगे और इसे दिल से अपनाएंगे।
सवाल-इस किरदार के लिए आपने किस तरह की तैयारी की?एक पुलिस अफसर के किरदार में पूरी तरह ढलने के लिए चाल-ढाल, हावभाव और बॉडी लैंग्वेज पर खासा ध्यान देना पड़ता है। जब आप स्क्रिप्ट को गंभीरता से पढ़ते और समझते हैं, तो किरदार धीरे-धीरे आपके भीतर अपनी जगह बना लेता है। इस भूमिका के लिए मैंने मनाली की पुलिस व्यवस्था को करीब से जानने की कोशिश की, एक अफसर की कार्यशैली को समझा और उसके लिए रिसर्च के साथ-साथ वर्कशॉप्स भी अटेंड कीं, जिससे किरदार को वास्तविकता के करीब ला सकूं।
सवाल-ऐसा कौन-सा किरदार है, जिसे निभाने की आपकी बड़ी तमन्ना है?पहले मुझे लगता था कि कुछ खास तरह की भूमिकाएं मेरे लिए नहीं हैं, लेकिन समय के साथ नजरिया भी बदला और ऑडियंस की सोच भी। आज के दर्शक ऐसे किरदारों से जुड़ते हैं जो वास्तविक हों और सशक्त भी। मैं अब ऐसे रोल्स की तलाश में हूं जो केवल ताकतवर ही नहीं हों, बल्कि भावनात्मक रूप से भी असर छोड़ें। मेरे लिए किसी किरदार की गहराई और उसका असर कहीं ज्यादा मायने रखता है, बजाय इसके कि वह सिर्फ दिखावटी या ग्लैमरस हो।
सवाल-एक्टिंग की शुरुआत आपने कैसे की?पढ़ाई के दौरान ही मुझे एक्टिंग की दुनिया में पहला कदम रखने का मौका मिला, जब अचानक एक रोल का ऑफर आया। उस समय मैं कॉलेज में स्टेज पर ड्रामा किया करती थी और अभिनय मेरे लिए बस एक शौक जैसा था। लेकिन धीरे-धीरे जब हर किरदार को निभाने का अनुभव गहराने लगा, तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे इस कला से सच्चा प्यार हो गया है। स्टेज की रोशनी, संवादों की गूंज और किरदारों में खुद को ढालने की प्रक्रिया ने मुझे भीतर तक छू लिया। यही जुनून इतना प्रबल हो गया कि मैंने एक्टिंग को ही अपना करियर बना लिया। यह पूरी यात्रा एक खूबसूरत संयोग की तरह शुरू हुई, जिसने मेरी ज़िंदगी की दिशा ही बदल दी।
सवाल- इस इंडस्ट्री में आपने खुद को अब तक कैसे बनाए रखा?मेरा मानना है कि फिल्म और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में लंबे समय तक टिके रहने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है, लगातार सीखते रहना। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हर दिन कुछ नया होता है, हर प्रोजेक्ट एक नया अनुभव लेकर आता है। मैंने कभी यह सोचकर मदद मांगने से हिचकिचाहट नहीं की कि लोग क्या सोचेंगे, क्योंकि मुझे लगता है कि सीखने की कोई उम्र या स्थिति नहीं होती। करियर की शुरुआत से लेकर अब तक कई तरह की चुनौतियों का सामना किया, लेकिन हर चुनौती ने मुझे कुछ न कुछ सिखाया, चाहे वो पेशेवर स्तर पर हो या व्यक्तिगत रूप से। मैं हर दिन खुद को पहले से बेहतर बनाने की कोशिश करती हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि कलाकार के रूप में विकास की कोई अंतिम सीमा नहीं होती।
सवाल-क्या अब फीमेल एक्टर्स को भी एक्शन रोल मिलने लगे हैं?बिलकुल! आज के दौर में महिला कलाकारों के लिए एक्शन रोल्स के दरवाज़े कहीं ज्यादा खुल गए हैं। दर्शकों की सोच भी बदल चुकी है, अब वे सिर्फ स्टारडम या बॉक्स ऑफिस आंकड़ों पर नहीं टिके रहते, बल्कि ऐसे किरदारों को सराहते हैं जो असली लगें और जिनसे वे खुद को जोड़ सकें। महिलाएं अब महज सपोर्टिंग रोल तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे लीड में आकर दमदार और प्रभावशाली एक्शन भूमिकाएं निभा रही हैं।
सवाल- फिल्म के डायरेक्टर विक्रम और को-एक्ट्रेस आकांक्षा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?यह अनुभव वास्तव में बेहद अच्छा और सीखने वाला रहा। हमारे डायरेक्टर ने शुरू से ही एक बात पर ज़ोर दिया कि ऑन-स्क्रीन और ऑफ-स्क्रीन की दुनिया को अलग रखा जाए, ताकि हम अपने किरदार में पूरी तरह डूब सकें और उसकी सच्चाई को महसूस कर सकें। इस सोच ने हमारी परफॉर्मेंस को कहीं ज्यादा स्वाभाविक और प्रभावशाली बना दिया। पूरी टीम का काम करने का तरीका बेहद प्रोफेशनल था, और सेट का माहौल इतना सहयोगपूर्ण रहा कि हर दिन ऐसा लगा जैसे हम अभिनय की कला को जी रहे हैं, न कि सिर्फ निभा रहे हैं।
सवाल-क्या आपने अपने करियर में कुछ सीमाएं तय की हैं?हाँ, मैंने अपने लिए कुछ स्पष्ट सीमाएं तय की हैं। जैसे सलमान खान ने अपने करियर में कुछ निजी नियम अपनाए हैं, वैसे ही मैंने भी निर्णय लिया है कि जब तक किसी सीन की स्क्रिप्ट में वास्तव में उसकी आवश्यकता न हो, तब तक मैं किसिंग या इंटीमेट सीन्स करने से परहेज करूंगी। 'आश्रम' जैसी वेब सीरीज ने मुझे एक खास पहचान दिलाई है, जिसे मैं बहुत सम्मान और जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ाना चाहती हूं। मेरी कोशिश यही रहती है कि मैं अपने किरदारों का चुनाव सोच-समझकर करूं, ताकि मेरी छवि और मेरी संवेदनाएं दोनों संतुलित रूप से सामने आ सकें।
सवाल-युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगीमैं आज के युवाओं को यही कहना चाहूंगी कि अगर आपने सचमुच ठान लिया है कि आपको अभिनय या फिल्म इंडस्ट्री में करियर बनाना है, तो सबसे पहले अपने लक्ष्य को लेकर पूरी निष्ठा और ईमानदारी रखें। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां सफलता एक रात में नहीं मिलती। आपको लगातार मेहनत करनी होगी, खुद को हर दिन बेहतर बनाना होगा। दूसरों से अपनी तुलना करने के बजाय, अपनी यात्रा पर ध्यान दें, अपने हुनर को तराशें और हर अनुभव से कुछ सीखने की कोशिश करें। चाहे वह थिएटर हो, वर्कशॉप हो या छोटे-छोटे ऑडिशन, हर मौका आपके विकास का हिस्सा बन सकता है। और सबसे ज़रूरी चीज़ है धैर्य। यह इंडस्ट्री आपको कई बार निराश करेगी, लेकिन अगर आप अपने सपनों के लिए सच्चे हैं और डटे रहते हैं, तो एक न एक दिन दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा। विश्वास बनाए रखें और चलते रहें।------------
हिन्दुस्थान समाचार / लोकेश चंद्र दुबे