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चतरा, 31 जुलाई (हि.स.)। भगवान शिव का प्रिेय महीना सावन का धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से विशेष महत्व है। यह बातें चतरा के आचार्य चेतन पाण्डेय ने कही। उन्होंने कहा कि इस माह हम भीतर की दिव्य शक्ति जगा पाते हैं। खुद को भीतर से मजबूत कर पाते हैं। इस शक्ति से विश्व कल्याण के साथ स्वयं को भी स्वस्थ रख सकते हैं।
उन्होंने कहा कि सावन श्रद्धा को जगाने का समय है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि जहां ज्योतिर्लिंग विरामान हैं। वहां सबसे ज्यादा रेडिएशन निकलता है। जहां स्वयं भू-शिवलिंग हैं। वहां हमें शक्ति का अहसास होता है। तभी बड़ी-बड़ी आपदाओं में ऐसे मंदिर सुरक्षित रहे हैं। मान्यता है कि सावन में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने आराधना की थी। देवता शिव की शरण में योग शिक्षा लेते हैं। असमय मौत से मुक्ति के लिए अनुष्ठान का विशेष विधान है। इस माह भगवान शिव शिवलिंग के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। माता पार्वती ने भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए उनकी तपस्या इसी माह शुरू की थी। सावन में किया गया शिव कर्म शिवलोक को प्राप्त होता है।
आचार्य चेतन पाण्डेय ने कहा कि सावन का वनस्पति से भी संबंध है। कई प्रकार की वनस्पतियों से शिव साधना फल देती है। पुराणों के अनुसार इस माह सभी ज्योतिलिंगों में भगवान शिव का प्रत्यक्ष रूप से वास होता है। सावन में भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता की झलक हरी भरी प्रकृति के जरिए देखी जा सकती है। श्रद्धालु और भक्त त्रिनेत्रधारी भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र ऊं नमः शिवाय का सच्चे मन से जाप करता है, भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण करते हैं। वह अपने भक्तों को भवसागर से पार लगाते हैं।
यह ऐसा समय है, जब धीरे-धीरे युग परिवर्तन का वातावरण सृजित होता दिखाई दे रहा है। सप्रवृत्तियों पर आसुरी प्रवृत्तियां हावी होती जा रही हैं। छल, प्रपंच, झूठ, व्यभिचार और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। तब जगत के कल्याण के लिए भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर पहुंचते हैं और अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। सावन महीने में भगवान शिव से संबंधित किए गए जप तप और अन्य अनुष्ठान कई गुना अधिक फल देते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी