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जोधपुर, 31 जुलाई (हि.स.)। जिला उपभोक्ता आयोग जोधपुर द्वितीय ने दो परिवाद मंजूर करते हुए व्यवस्था दी है कि निवेश या व्यावसायिक उद्देश्य से ली गई बीमा पॉलिसी धारक उपभोक्ता की श्रेणी में आने से परिवाद पोषणीय है। वहीं दूसरे परिवाद में बैंक द्वारा बीमा पॉलिसी रद्द करने की सूचना नहीं देने को अनुचित व्यापार व्यवहार माना है। आयोग के अध्यक्ष डॉ यतीश कुमार शर्मा और सदस्य डॉ अनुराधा व्यास ने एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी पर 10 हजार रुपये हर्जाना तथा रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी और बैंक ऑफ इंडिया पर बीस बीस हजार रुपये हर्जाना लगाया है।
परिवाद प्रथम :
पहले मामले में हर्षिता कोठारी ने अधिवक्ता अनिल भंडारी के माध्यम से परिवाद दायर कर कहा कि उनकी माताजी ने पांच लाख रुपये का जीवन बीमा एच डी एफ सी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से कराया था। 24 फरवरी 2023 को बीमाधारी की मृत्यु का दावा यह कहकर खारिज कर दिया कि बीमा पॉलिसी लेते वक्त आवश्यक तथ्य छुपाए थे। परिवादी की ओर से बहस करते हुए कहा गया कि बीमा पॉलिसी के समय आयकर रिटर्न और अन्य बीमा पॉलिसी का हवाला दिया था। बीमा कंपनी की ओर से आपत्ति की गई कि बीमा आवरण यूलिप पॉलिसी है, जो निवेश के उद्देश्य से ली गई है, सो व्यावसायिक गतिविधि होने से परिवादी उपभोक्ता नहीं है।
जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद मंजूर करते हुए दस हजार रुपये हर्जाना और पांच हजार रुपये परिवाद व्यय लगाते हुए कहा कि यूलिप के बहाने से मृत्यु दावे को नकारना सेवा दोष है और परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। उन्होंने पांच लाख रुपये मय ब्याज 30 दिन में अदा करने का आदेश दिया।
परिवाद द्वितीय :
दूसरे मामले में मधुबाला उपाध्याय ने कहा कि बैंक ऑफ इंडिया ने बचत खाता होने से वर्ष 2011 से प्रति वर्ष नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से 2018 तक मेडीक्लेम बीमा खाते से प्रीमियम कटौती कर करवाया जाता रहा है और उन्हें काफी समय बाद जानकारी हुई कि बीमा कंपनी ने वर्ष 2019 की पॉलिसी नवीकरण नहीं करते हुए बैंक को प्रीमियम रिफंड कर दिया,लेकिन बैंक ने इसकी जानकारी परिवादी को नहीं दी। परिवादी ने बाद में अपना बीमा रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी से करवाया। 2022 में घुटनों की सर्जरी का दावा बीमा कंपनी ने यह कहकर खारिज कर दिया कि 6 साल से घुटनों की तकलीफ है। अधिवक्ता अनिल भंडारी ने बहस करते हुए कहा कि एम्स अस्पताल ने तीन साल से घुटने की समस्या बताई है, लेकिन कहीं पर यह नहीं आया कि तीन या छह साल पहले घुटने खराब हो चुके हों।
जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद मंजूर करते हुए बैंक और बीमा कंपनी पर बीस बीस हजार रुपए हर्जाना व दस हजार रुपए परिवाद व्यय लगाते हुए कहा कि 67 वर्षीय महिला के घुटने दुखने से यह निष्कर्ष निकालना कि घुटने पहले से ही खराब हो गए हो और इस आधार पर दावा खारिज किया जाना बीमा कंपनी की सेवा में कमी और त्रुटि है। उन्होंने कहा कि बैंक को बीमा कंपनी की ओर से प्रीमियम रिफंड करने के बावजूद बैंक ने कई माह तक परिवादी को इसकी जानकारी नहीं देकर अनुचित व्यापार व्यवहार किया है।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश