वामपंथी उग्रवाद की विदाई की ओर भारत: हथियार नहीं, विकास ही अंतिम समाधान
लेखक फाेटाे -डॉ. मयंक चतुर्वेदी


- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भारत में उग्रवाद के कई रूप देखने को मिले हैं, धार्मिक आतंकवाद से लेकर सीमापार प्रायोजित चरमपंथ और वामपंथी अतिवाद तक, लेकिन इन सबमें सबसे लंबे समय तक और भीतर से देश की जड़ों को खोखला करने वाले उग्रवादों में रहा है वामपंथी उग्रवाद, जिसे 'लाल आतंक' या 'नक्सलवाद' के नाम से भी जाना जाता है। बीते दो दशकों में यह समस्या देश के कई राज्यों में गंभीर चुनौती बनी रही है। किंतु केंद्र और राज्यों के संयुक्त प्रयासों, बहुआयामी रणनीतियों और सुरक्षा के साथ-साथ विकास को समान गति से आगे बढ़ाने की नीति ने इस उग्रवाद के खात्मे को निर्णायक मोड़ पर ला दिया है।

यहां यह ध्‍यान देने योग्‍य है कि देश के संविधान की सातवीं अनुसूची में ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ को राज्यों का विषय माना गया है, लेकिन वामपंथी उग्रवाद जैसी जटिल समस्या को देखते हुए केंद्र सरकार ने समय-समय पर व्यापक सहयोग की भूमिका निभाई है। वर्ष 2015 में इस दिशा में निर्णायक पहल के रूप में राष्ट्रीय नीति एवं कार्य योजना को मंजूरी दी गई थी, जिसमें चार स्तंभों सुरक्षा, विकास, अधिकारों की रक्षा और पुनर्वास को केंद्र में रखा गया। जिसके बाद इन सभी बिन्‍दुओं पर गंभीरतापूर्वक कार्य आंरभ होता हुआ देखा जाने लगा। जिसका परिणाम है कि जो ‘नक्‍सलवाद’ एक समय देश के लगभग 126 जिलों में फैल चुका था, वह सि‍मट कर सिर्फ 18 जिलों तक सीमित हो गया। वास्‍तव में आज केंद्र की मोदी सरकार ने सुरक्षा व्यवस्था को अत्याधुनिक बनाने, राज्यों को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) बटालियन, खुफिया सूचनाएं, आधुनिक हथियार और प्रशिक्षण जैसे साधनों से सशक्त किया है।

विशेष योजनाओं के अंतर्गत सुरक्षा संबंधी व्यय योजना के तहत 3357 करोड़ रुपये राज्यों को दिए गए। विशेष आधारभूत संरचना योजना के तहत 71 किलेबंद पुलिस स्टेशनों का निर्माण हुआ, जो कि सीधे मुठभेड़-प्रवण क्षेत्रों में स्थापित किए गए। यह केवल पुलिस बलों की रक्षा नहीं करते, बल्कि नागरिकों में विश्वास भी जगाते हैं। केंद्र सरकार ने माना कि वामपंथी उग्रवाद का सबसे बड़ा कारण सामाजिक और आर्थिक उपेक्षा रहा है। इसीलिए, आज मोदी सरकार नक्‍सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़क, टेलीफोन, शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय समावेशन जैसे क्षेत्रों पर विशेष ज़ोर दे रही है। दो प्रमुख योजनाएं, रोड रिक्वायरमेंट प्लान और वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क परियोजना (आरसीपीएलडब्ल्यूईए) के तहत 17,589 किलोमीटर सड़क निर्माण की स्वीकृति मिली, जिसमें से अब तक 14,902 किलोमीटर बन चुकी हैं। टेलीकॉम कनेक्टिविटी सुधारने हेतु 10,644 मोबाइल टावरों की योजना बनी, जिनमें से 8640 अब कार्यरत हैं। राज्‍यों के स्‍तर पर झारखंड जैसे तीव्र नक्‍सल प्रभावित राज्य जहाँ कभी संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप रहती थी, अब वहाँ 1589 टावर क्रियाशील हैं।

इसी तरह युवाओं को हिंसात्‍मक गतिविधियों से बचाने के लिए सरकार ने आईटीआई और कौशल विकास केंद्रों की स्थापना कर उन्हें हुनरमंद बनाने की ओर कदम बढ़ाया है। अब तक 46 आईटीआई और 49 कौशल विकास केंद्र संचालित हैं। जनजातीय क्षेत्रों में 258 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों को मंजूरी दी गई, जिससे कि आदिवासी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। इनमें से 179 स्कूल पहले ही चालू हो चुके हैं।

कोई भी शासन व्‍यवस्‍था क्‍यों न हो, विकास की असली बुनियाद तब बनती है जब नागरिकों को वित्तीय अधिकार मिले हों। वामपंथी उग्रवादियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए केंद्र व राज्यों की अपनी आत्मसमर्पण सह पुनर्वास नीतियां हैं। आत्मसमर्पण करने वाले अति उग्रवादियों को पांच लाख, अन्य वामपंथी उग्रवादी कैडरों के लिए ढाई लाख रुपये तत्काल दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त तीन वर्षों के लिए 10,000 रुपये के मासिक वृत्ति के साथ उनकी रुचि के व्यापार/व्यवसाय में प्रशिक्षण दिए जाने का भी प्रावधान है।

कुल मिलाकर आत्‍म निर्भरता तक की वित्तीय सहायता, हथियारों के आत्मसमर्पण पर प्रोत्साहन, मासिक वृत्ति, और व्यवसाय में प्रशिक्षण जैसे कई विकल्प दिए गए हैं। राज्यों को आत्मसमर्पण सह पुनर्वास की बेहतर नीतियां अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है। इसके पीछे मंशा यही है कि जो युवा बंदूक उठा चुके हैं, वे मुख्यधारा में लौटकर सम्मानपूर्वक जीवन जी पाएं। आज इन नीतियों के दृढ़तापूर्वक क्रियान्वयन से वामपंथी हिंसा में लगातार कमी आई है और वामपंथ का विस्तार सीमित हुआ है। केंद्र एवं राज्‍यों सरकारों के प्रयासों का यह भी परिणाम दिखाई देता है कि 2016 के बाद से नक्सली नेतृत्व में स्पष्ट दरारें दिखीं, जिसके कारण से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सीमाओं से माओवादी पूरी तरह बेदखल किए जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी अनेकों शीर्ष माओवादी मारे गए या गिरफ्तार हुए हैं। माओवादियों का आंतरिक नेटवर्क, चाहे वह हथियारों की आपूर्ति हो, शहरी नक्‍सल नेटवर्क या विचारधारात्मक प्रचार, आज सभी ध्वस्त होने लगे हैं । सुरक्षा एजेंसियों द्वारा सटीक खुफिया अभियानों के कारण बड़े नेताओं जैसे गणपति, माधवी, सुनंदा, नवीन जैसे शीर्ष माओवादियों का खात्मा हुआ है। साथ ही 'शहरी नेटवर्क' के खिलाफ शुरू हुए अभियानों ने बौद्धिक और कानूनी परिधि में छिपे समर्थकों को भी बेनकाब किया जाना जारी है ।

आज जब हम 2025 का आधा साल ब‍िताकर खड़े हैं, तब उस समय में यह स्पष्ट दिखता है कि वामपंथी उग्रवाद अब भारत की प्रमुख सुरक्षा चुनौती नहीं रह गया। झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में जो सफल प्रयोग हुए हैं, उन्हें अब मॉडल के रूप में पूरे देश में लागू करने की आवश्यकता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वर्ष 2014 के बाद वामपंथी उग्रवाद पर लगाम लगाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका राजनीतिक इच्छाशक्ति की रही है। जहाँ पहले इससे जुड़ी रणनीतियां संकोच, विरोधाभास और सीमित प्रभाव की शिकार रहती थीं, अब पूरे देश में एकीकृत सोच और दिशा के साथ कार्रवाई हुई है। गृह मंत्रालय, राज्य पुलिस, अर्धसैनिक बल और स्थानीय प्रशासन का सामंजस्य बनाना आसान नहीं था, किंतु यह गृहमंत्री अमित शाह के प्रयासों से संभव हुआ है। इसीलिए आज नक्‍सल हिंसा में पूर्व की तुलना में 85 प्रतिशत से अध‍िक की कमी आई है । गृहमंत्री अमित शाह का संकल्‍प वर्ष 2026 तक नक्‍सलवाद को भारत से समाप्‍त कर देना है।

कहना होगा कि नक्सलवाद भारत के लोकतंत्र की सबसे लंबी और कठिन परीक्षा रही है। इस संघर्ष में हमने हजारों पुलिसकर्मियों, सीआरपीएफ जवानों, राजनेताओं, ग्रामीणों और शिक्षकों को खोया है। लेकिन 2025 में हम यह देख रहे हैं कि भारत ने नक्‍सल विरोधी अपनी लड़ाई में निर्णायक बढ़त पा ली है। अब यह सुनिश्चित करना है कि देश के दूरदराज के गांव, जो वर्षों तक विकास और भरोसे से वंचित रहे, उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सम्मान के साथ मुख्यधारा में समानता का स्थान मिले।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी