इस बार भ्रदा रहित होगा रक्षा बंधन का पर्व, किसी भी समय किया जा सकता है रक्षा पर्व
प्रतीकात्मक चित्र


हरिद्वार, 30 जुलाई (हि.स.)। इस वर्ष श्रावणी उपाकर्म व रक्षा बंधन का पर्व आगामी 9 अगस्त को मनाया जाएगा। श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों के मुख्य पर्वों में से एक माना जाता है। इसके साथ ही बार रक्षा बंधन का पर्व भद्रा रहित रहेगा। इस कारण से किसी भी समय रक्षा बंधन का पर्व मनाया जा सकता है।

रक्षाबंधन पर इस बार भद्रा का साया नहीं होगा। दशकों बाद ये संजोग बन रहा है। इसके चलते इस बार बहनें अपने भाइयों की कलाई पर सुबह से लेकर शाम तक राखी बांध सकती हैं। शास्त्रों में उल्लेख ह ैकि भद्रा में राखी नहीं बांधी जानी चाहिए। इस बार रक्षाबंधन के दिन सूर्य की पुत्री एवं शनि की बहन भद्रा भूलोक में नहीं होगी।

भद्रा को शुभ कार्यों में अशुभ माना जाता है। इसीलिए इस बार पूरे दिन राखी का त्योहार हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाएगा। पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक इसके साथ ही श्रावणी उपाकर्म भी भ्रदा रहित होने के कारण बिना उलझन के मनाया जा सकेगा। बता दें कि चार वर्णों के चार प्रमुख त्यौहार बताए गए हैं। जिनमें वैश्यों का प्रमुख पर्व दीपावली श्रत्रियों का दशहरा, शुद्र वर्ण के लिए होली और ब्राह्मणों के लिए श्रावणी उपाकर्म प्रमुख है। इस दिन विप्र नदी के तट पर रक्षा सूत्र (जनेऊ) का संधान करते हैं तथा हिमाद्री स्नान आदी के साथ श्रावणी पर्व मनाते हैं। इस कारण से ब्राह्मणों के लिए रक्षा बंधन (श्रावणी पर्व) का विशेष महत्व है।

पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक इस बार रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार 9 अगस्त को शुभ और विशेष ग्रहों के दुर्लभ योग में मनाया जाएगा। इसके चलते पूरे दिन बहनें भाई की कलाई पर राखी बांध सकेंगी। रक्षाबंधन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को भद्रा रहित तीन मुहूर्त या उससे अधिकव्यापिनी पूर्णिमा तिथि को अपराह्न व प्रदोष काल में मनाया जाता है। हर वर्ष भद्रा राखी को प्रभावित करती है।

दशकों बाद निर्विघ्न राखी का संयोग बन रहा है। इस बार भद्रा 9 अगस्त को सूर्य उदय से काफी पहले ही समाप्त हो जाएगी। शनिवार को दिन या रात में किसी भी प्रकार का भद्रा का साया नहीं रहेगा। रक्षाबंधन पर शनिवार का दिन श्रवण नक्षत्र व सौभाग्य योग का शुभ संयोग त्रिवेणी योग का निर्माण कर रहा है। इस दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे, इसके स्वामी शनि है, शनिवार के दिन के स्वामी भी शनि है, श्रावण नक्षत्र स्वयं शनि की राशि में आता है।

शास्त्रीय मान्यता के अनुसार श्रवण नक्षत्र के अधिपति भगवान विष्णु है, जबकि सौभाग्य योग के अधिपति ब्रह्मा है। इसी कारण इस बार यह पर्व ब्रह्मा, विष्णु की दृष्टि में संपन्न होगा, जो इसे आध्यात्मिक दृष्टि से और भी अधिक सौभाग्यशाली बना रहे हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला