बच्चों के यौन उत्पीड़न मामलों में सपोर्ट पर्सन के लिए सी-लैब ने शुरू किया देश का पहला सर्टिफिकेट कोर्स
द सेंटर फॉर लीगल एक्शन एन बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रेन (सी-लैब) ने देश में अपनी तरह का पहला सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया


नई दिल्ली, 30 जुलाई (हि.स.)। बाल यौन शोषण के सभी मामलों में सपोर्ट पर्सन की अनिवार्य रूप से नियुक्ति के लिए 2023 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद द सेंटर फॉर लीगल एक्शन एन बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रेन (सी-लैब) ने देश में अपनी तरह का पहला सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया है। सी-लैब देश का एक प्रमुख संस्थान है जो कानून के शासन पर अमल के जरिए बच्चों के सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने में योगदान दे रहा है।

इस कोर्स में पहले व्याख्यान के लिए बुलाए गए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि न्याय का पैमाना सिर्फ फैसले ही नहीं बल्कि यह भी है कि पूरी प्रक्रिया के दौरान बच्चे की गरिमा और सम्मान का कितना ख्याल रखा गया। इस पूरी यात्रा में पर्दे के पीछे सबसे बड़ी ताकत सपोर्ट पर्सन होते हैं जो उन्हें मार्ग दिखाते हैं, सुरक्षा करते हैं और सबसे बुरे वक्त में पीड़ित परिवार का संबल व सहारा बनते हैं। चाहे कचहरी हो, थाना या अस्पताल हो वे पीड़ित के घावों पर मरहम लगाने और संकट की घड़ी में धैर्य रखने के लिए एक कंधा मुहैया कराते हैं। उन्होंने कहा कि सी-लैब की यह पहल प्रशिक्षण से कहीं आगे जाती है। यह सुव्यवस्थित रूपांतरण की दिशा में एक कदम है। यदि यह सही तरीके से होता है तो यह न सिर्फ एक पीड़ित बच्चे को फिर से खड़ा होने में मदद करेगा बल्कि उसे यह विश्वास दिलाएगा कि न्याय संभव है।

दस हफ्ते के इस ऑनलाइन और क्लासरूम के अनूठे कोर्स की निदेशक डॉ. संगीता गौड़ ने बतायाकि पॉक्सो जैसे सख्त कानूनों के बावजूद हमारे हजारों बच्चे अदालतों के चक्कर काट रहे हैं या फिर अपने घर में दुबके हुए हैं और उनकी सहायता व मार्गदर्शन के लिए कोई नहीं है। इन बच्चों के साथ संवेदनशीलता से पेश आने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इससे भी अहम यह है कि उन बच्चों को बताया जाए कि उनके कानूनी अधिकार क्या हैं और वे किन चीजों के हकदार हैं। एक प्रशिक्षित सपोर्ट पर्सन बच्चों की मदद करते हुए यह सुनिश्चित कर सकता है कि उनकी गरिमा से खिलवाड़ नहीं हो और न्याय अवश्य मिले।

उल्लेखनीय है कि सपोर्ट पर्सन वह होता है जो यौन शोषण के पीड़ित बच्चों की कानूनी, चिकित्सकीय व भावनात्मक तरीके से मदद करता है और उन्हें समाज की मुख्य धारा में वापस लाने में सहायता करता है।

सपोर्ट पर्सन की अहमियत को रेखांकित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों को पॉक्सो मामलों में हर पीड़ित बच्चे के लिए अनिवार्य रूप से सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति का आदेश दिया था। इस फैसले के बाद यौन शोषण के शिकार 2.39 लाख बच्चों की मदद के लिए प्रशिक्षित सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति की जानी है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी