जीवन में संघर्ष करने वाला ही सफलता के शिखर पर पहुंचता है: प्रथम सागर
पार्श्वनाथ जिनालय में संतों का प्रवचन सुनते हुए श्रद्धालु।


पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन देते हुए संत प्रथम सागर।


धमतरी, 30 जुलाई (हि.स.)। चातुर्मास के तहत पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार में संतों का प्रवचन जारी है। प्रशम सागर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि जीवन में संघर्ष करने वाला ही सफलता के शिखर पर पहुंचता है। ऐसे ही आत्मा के विकास के लिए तप रूपी संघर्ष करने वाला जीव ही परमात्मा बनता है। संसार के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कम करना पड़ता है किंतु संसार से मुक्ति के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष अधिक करना पड़ता है। हमारे जीवन में ऐसा संघर्ष हमेशा चलते रहना चाहिए जिससे कुछ न कुछ आत्मा का विकास होता रहे।

उन्होंने कहा कि पुण्योदय से मानव जीवन मिला है इसका उपयोग पुण्य कार्य में ही करें। इस तरह जन्म मरण का क्रम न जाने कब से चल रहा है। अब इसे तोड़ने का प्रयास करें। दृष्टि का सम्यक उपयोग करके अपने मिथ्यात्व का नाश करें। राग द्वेष को तोड़ने का प्रयास करें तभी यह जीव संसार से मुक्त होकर सिद्ध बुद्ध हो सकता है। अपने शुद्ध आत्मा को खोजने का प्रयास करें क्योंकि शुद्ध आत्मा ही परमात्मा है। और शुद्ध स्वरूप को पाने के लिए अपने अंदर ही खोजना पड़ेगा क्योंकि बाहर के संसार में केवल संसार को बढ़ाने वाले साधन ही है। जिस वस्तु का वर्तमान में सदुपयोग नहीं होता वह वस्तु भविष्य में भी नहीं मिलती। उन्‍होंने कहा कि जिस प्रकार गंदे कपड़े को हाथ के माध्यम से पूजा साबुन से संघर्ष कराकर साफ किया जाता है, उसी प्रकार आत्मा रूपी कपड़े को शरीर के माध्यम से तप रूपी साबुन से संघर्ष कराकर साफ अर्थात शुद्ध करना है। ज्ञानी कहते हैं कि परमात्मा की पूजा करना आसान है, किंतु अपने कषायों पर विजय पाना कठिन है। जीवन में ऐसी चुनौती स्वीकार करनी चाहिए जिससे मोक्ष रूपी सफलता मिल सके।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा