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नई दिल्ली, 30 जुलाई (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के संयुक्त मिशन नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (निसार) उपग्रह का बुधवार शाम 5.40 बजे सफल प्रक्षेपण किया गया। इसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) से प्रक्षेपित किया गया।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह ने निसार के सफल प्रक्षेपण पर देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने बताया कि इस उपग्रह के माध्यम से चक्रवात, बाढ़ आदि जैसी आपदाओं के सटीक प्रबंधन में एक क्रांतिकारी बदलाव आएगा। इसके अलावा इसकी कोहरे, घने बादलों, बर्फ की परतों आदि को भेदने की इसकी क्षमता विमानन और नौवहन क्षेत्रों के लिए भी काफी मददगार होगी। उन्होंने कहा कि विश्वबंधु की सच्ची भावना के अनुरूप निसार से प्राप्त इनपुट पूरे विश्व समुदाय को लाभान्वित करेंगे। उन्होंने इस पल पर गर्व करते हुए कहा कि वे आज अंतरिक्ष विभाग से जुड़े रहने पर गर्व महसूस कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इसरो के अथक प्रयास से देश अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक के बाद एक वैश्विक उपलब्धियां हासिल कर रही है।
इसरो के मुताबिक निसार को सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा में भेजा गया। यह सैटेलाइट 740 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित होगा। यह एक अत्याधुनिक रडार सैटेलाइट है, जो बादलों और बारिश के बावजूद 24 घंटे पृथ्वी की तस्वीरें ले सकेगा। निसार उपग्रह का वजन 2,393 किलोग्राम है। जीएसएलवी-एस16 रॉकेट की लंबाई 51.7 मीटर है। सैटेलाइट की खास बात यह है कि इसकी मदद से धरती के हर इंच पर नजर रखना संभव हो सकेगा।
निसार में दो रडार लगे हैं जिसमें एल-बैंड एसएआर जो लंबी तरंगों वाला रडार है जिसे नासा ने विकसित किया है। दूसरा एस-बैंड एसएआर छोटी तरंगों वाला रडार है जिसे इसरो ने विकसित किया है। नासा ने 12 मीटर का एंटीना और 9 मीटर का बूम भी बनाया है, जो अंतरिक्ष में खुलेगा। इसरो सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया और उसे नियंत्रित भी कर रहा है।
इसका उद्देश्य बाढ़, ग्लेशियर, कोस्टल इरोजन (तटीय क्षेत्रों में होने वाला कटाव) जैसी प्राकृतिक घटनाओं पर नजर रखना और उसकी पूर्व जानकारी देना है, पर इससे दुश्मन देशों की गतिविधियों पर भी पैनी नजर रखी जा सकेगी। यह सैटेलाइट भूस्खलन, आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन की निगरानी में मदद करेगा।
यह सैटेलाइट किसी भी मौसम में और दिन-रात 24 घंटे पृथ्वी की तस्वीरें ले सकता है। यह भूस्खलन का पता लगाने, आपदा प्रबंधन में मदद करने और जलवायु परिवर्तन की निगरानी करने में भी सक्षम है। इससे हिमालय और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में वनों में होने वाले बदलाव, पर्वतों की स्थिति या स्थान में बदलाव और हिमनद की गतिविधियों सहित मौसमी परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकेगा।
इस मिशन की योजना अमेरिका और भारत की अंतरिक्ष एजेंसियों ने 10 साल पहले मिलकर बनाई थी। विगत फरवरी में वाशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात के बाद इस मिशन को और तेजी से आगे बढ़ाने का फैसला लिया गया था। यह मिशन सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा में जाने वाला जीएसएलवी रॉकेट का पहला मिशन है। यह श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से 102वां प्रक्षेपण है।--------------
हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी