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- मयंक चतुर्वेदी
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा आतंकियों के खिलाफ चलाया गया ताजा अभियान ‘ऑपरेशन महादेव’ एक बार फिर यह रेखांकित करता है कि भारत अपने एक भी आतंकवादी दुश्मन को नहीं छोड़ेगा। जम्मू-कश्मीर में इस अभियान के अंतर्गत उन तीन आतंकियों को मार दिया, जिन्होंने पहलगाम में हुए नरसंहार से भारत की आत्मा को छलनी करने की हिम्मत की थी।
वस्तुत: यह मुठभेड़ ऐसे समय में हुई है जब देश में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की गूंज बनी हुई है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत ने पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में स्थित आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए थे। इनमें लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के प्रशिक्षण शिविर शामिल थे। भारत सरकार की ओर से बताया भी गया, कैसे इस अभियान में 100 से अधिक आतंकियों को मार गिराया और पाकिस्तान के 11 हवाई ठिकानों को भी तबाह किया गया था।
वास्तव में 22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए नृशंस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस हमले में 26 निर्दोष लोगों को केवल उनके धर्म के आधार पर निशाना बनाया गया, जो इस्लामिक कलमा नहीं पड़ पाए उन्हें गोलियों से भून दिया गया। तब यह जरूरी भी था कि आतंक का जवाब उसी भाषा में दिया जाए जिसे ये आतंकवादी समझते हैं, ताकि फिर ये सिर उठाने की हिम्मत करने के पहले कई बार सोचें जरूर कि इसका अंजाम क्या होगा!
इस संदर्भ में वस्तुत: भारत की हालिया कार्रवाइयाँ यह दर्शाती हैं कि वह अब न तो आतंकी हमलों को ‘स्थानीय घटनाएँ’ मानकर टाल रहा है, और न ही कूटनीतिक औपचारिकताओं में उलझ रहा है। यदि हम जम्मू-कश्मीर को लेकर ही पिछले पांच वर्ष का आंकड़ा देखते हैं तो ध्यान में आता है कि वर्ष 2020 में 225 आतंकवादी मारे गए, जिसमें 207 कश्मीर में और 18 जम्मू में। साथ ही 635 ओजीडब्ल्यू (संदिग्ध सहयोगी) गिरफ्तार किए गए। वर्ष 2021 में 171 आतंकवादी ढेर हुए, जिनमें 149 स्थानीय और 22 पाकिस्तानी थे । 2022 में 172 आतंकी ढेर हुए, जिनमें 42 विदेशी थे। 100 नए शामिल, उनमें से 65 मारे गए और 17 गिरफ्तार हुए। सक्रिय आतंकियों की संख्या दहाई में आ गई। वर्ष 2023 की बात की जाए तो जम्मू क्षेत्र में वर्ष भर में 81 आतंकवादी मारे गए, 214 गिरफ्तार किए गए।
इसी तरह से 2024 के दौरान पूरे वर्ष भर में जम्मू-कश्मीर में 75 आतंकवादी मारे गए, जिनमें लगभग 60 प्रतिशत पाकिस्तानी थे। वहीं, 2025 (जनवरी से जुलाई तक ऑपरेशन सिंदूर (5–7 मई) में पहले 100 से अधिक आतंकवादी ढेर किए गए। फिर ऑपरेशन महादेव समेत कुल आठ आतंकवादी मारे गए हैं।
ये आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत आतंकवाद के विरुद्ध अब केवल रक्षात्मक नहीं, आक्रामक और रणनीतिक दृष्टिकोण अपना रहा है। ऑपरेशन सिंदूर और महादेव जैसे अभियानों से यह संदेश गया है कि भारत आतंकवाद के स्रोतों को केवल अपने भूभाग में ही नहीं, सीमा पार भी समाप्त करने की सामर्थ्य और इच्छा रखता है। आज यह पूरे विश्व को भारत सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है इन कार्रवाइयों का उद्देश्य केवल बदला लेना नहीं, बल्कि यह स्पष्ट संदेश देना भी है कि आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बात अब ‘ऑपरेशन महादेव’ की; जब भारतीय सुरक्षा बलों ने पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) के मास्टरमाइंड और अन्य आतंकवादियों को निशाना बनाने के लिए लगाया गया तो उक्त अभियान का नाम रखा गया ‘ऑपरेशन महादेव।’ जब जम्मू‑कश्मीर के दचिगाम और लिडवास क्षेत्रों में तीन पाकिस्तानी लश्कर‑ए‑तैयबा के आतंकवादी, जिनमें प्रमुख था सुलेमान शाह उर्फ़ हाशिम मुसा को 28 जुलाई 2025 को सुरक्षा बलों ने सफलतापूर्वक ढेर किया तो यह ऑपरेशन सभी के बीच चर्चा का विषय बन गया। आखिर ‘ऑपरेशन महादेव’ ही क्यों? तब समझना होगा कि ऑपरेशन का नाम “महादेव” इसलिए रखा गया क्योंकि यह कार्रवाई महादेव चोटियों वाले जंगल क्षेत्र में हुई, जो श्रीनगर के पास है। लिडवास, हारवान, और दाचिगाम राष्ट्रीय उद्यान जैसे इलाके इस पर्वतीय क्षेत्र में आते हैं, जिसे स्थानीय लोग महादेव हिल्स या महादेव ट्रेक के नाम से जानते हैं। चूंकि आतंकवादियों का ठिकाना महादेव चोटी के आसपास के इलाके में था, इसलिए इस नाम को ऑपरेशनल कोडनेम के तौर पर चुना गया।
फिर यह नाम भारत की सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है, जो इसे केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक संदेशवाहक मिशन बनाता है। क्योंकि सतातन संस्कृति में 'महादेव' न्याय और संहार के देवता हैं। वे न्याय, संहार के साथ ही पुनर्सृजन के स्वरूप माने जाते हैं। फिर इस ऑपरेशन का उद्देश्य भी था, निर्दोषों की हत्या का बदला लेना, आतंकी साजिश को समाप्त करना और क्षेत्र में पुन: शांति स्थापित करना। इस सन्दर्भ में महादेव नाम अपने आप में न्याय के संकल्प और सच्चाई की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरा कारण यह भी है कि ऑपरेशन का नाम ‘महादेव’ रखना सुरक्षा बलों की ओर से देश के दुश्मनों को एक मनोवैज्ञानिक और नैतिक संदेश देना भी था। भारत न केवल बदला लेता है, बल्कि धर्म, सिद्धांत और न्याय के आधार पर आतंक का अंत करता है। यह नाम आतंकियों और उनके समर्थकों के लिए एक चेतावनी है कि भारत की सैन्य कार्रवाई सिर्फ हथियार नहीं, संवेदनशील उद्देश्य लेकर आती है।
कहना होगा कि मोदी सरकार ने आतंकवाद से निपटने के लिए “कोई समझौता नहीं” की नीति अपनाई है। इसका अर्थ है कि आतंकवादियों से किसी भी प्रकार की बातचीत, नरमी या समझौता की गुंजाइश नहीं रखी जाएगी, चाहे वे देश के भीतर हों या सीमा पार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से ही हर मंच पर यह दोहराया है कि “आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है।” उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, जी20, एसीओ और अन्य मंचों पर पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से आतंकवाद का प्रायोजक बताया है।
यही कारण है कि जब भी पाकिस्तान ने भारत पर आतंकवादी हमला किया है, उसे मुंहतोड़ जवाब दिया गया, फिर वह 2016 की उरी हमले के बाद की गई भारतीय सेना की एलओसी पार जाकर आतंकियों के लॉन्च पैड्स को नष्ट करने की सर्जिकल स्ट्राइक हो या पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक, जिसमें 26 फरवरी को वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शिविरों पर हमला किया था। वस्तुत: यह नीति दर्शाती है कि मोदी सरकार आतंकी हमले के बाद केवल चेतावनी देने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि निर्णायक जवाब देने की क्षमता और इच्छाशक्ति रखती है। देश में इस वक्त आतंकवाद पर भारत की निर्णायक कार्रवाई होते हुए चहुंओर देखा जा सकता है। फिर वह जिहादी, इस्लामिक आतंकवाद हो, नक्सली माओवादी आतंक हो या अन्य किसी प्रकार का आतंकवाद।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी