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औरैया, 30 जुलाई (हि. स.)। चंबल का बीहड़, जो कभी डकैतों की शरणस्थली के रूप में खौफ का दूसरा नाम माना जाता था, अब बदलाव की नई इबारत लिख रहा है। जिस धरती पर कभी गोलियों की गूंज सुनाई देती थी, आज वहीं फलों की मिठास घुल रही है।
पंचनद क्षेत्र के बबाइन गांव के उन्नतशील किसान अजय तिवारी ने बीहड़ की बंजर और कंटीली जमीन को हरा-भरा कर सबको चौंका दिया है। केला, अनार, नींबू, संतरा और मौसमी जैसे फलों की पैदावार कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि जज्बा हो तो असंभव भी संभव हो जाता है।
अजय तिवारी का जन्म चंबल-यमुना घाटी के सेंगनपुर गांव में हुआ। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े अजय बचपन से ही नए-नए प्रयोगों के शौकीन रहे। विषम हालात और प्रतिकूल मौसम के बावजूद उन्होंने अपनी निजी भूमि पर फैली बिलायती बबूल और कंटीली झाड़ियों को साफ किया और बागवानी शुरू की। कठिन परिश्रम के बल पर उन्होंने कम समय में ही फलों की अच्छी पैदावार कर सबको चकित कर दिया।
अजय तिवारी बताते हैं कि यह उनकी उम्मीदों को सफलता का मूर्त रूप है। चंबल-यमुना-सिंध-पहुज और क्वारी नदियों के संगम पर फैले बीहड़ कभी भी खेती के लिए मुफीद नहीं रहे। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों, बंजर जमीन और पूर्व में दस्युओं के आतंक ने यहां खेती को लगभग नामुमकिन बना दिया था।
आज उनकी सफलता न केवल किसानों में नई ऊर्जा भर रही है, बल्कि पलायन को भी रोकने का संदेश दे रही है। राष्ट्रीय राजमार्ग से 9 किलोमीटर दूर बबाइन के समीप बीहड़ में अजय तिवारी ने अपने जज्बे से यह साबित कर दिया कि हौसला हो तो आसमां में भी सुराख हो सकता है।
यह बदलाव चंबल घाटी के लिए एक नए युग की शुरुआत है और उन किसानों के लिए प्रेरणा है जो प्रतिकूल परिस्थितियों को बहाना बनाकर खेती से किनारा कर लेते हैं।
हिंदुस्थान समाचार / सुनील कुमार
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील कुमार